वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित है फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया'

27-07-2020 17:59:42
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वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित है फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया'



स्वतंत्रता दिवस से ऐन पहले भारतीय सेना के रणकौशल और वीरता की एक कहानी परदे पर दिखने वाली है। यह है वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया'। सच्ची घटना पर आधारित फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया' में भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 हुए युद्ध के एक दिन और एक रात की कहानी को दर्शाया गया है। फिल्म स्क्वॉर्डन लीडर विजय कर्णिक के साथ ही 'पगी' रणछोड़ दास सवाभाई रबारी समेत उन सामान्य लोगों के जज्बे की कहानी कहती है जिन्होंने 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की मदद के लिए रातों-रात एक हवाई पट्टी का निर्माण कर दिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया' पहले 14 अगस्त को बड़े परदे पर रिलीज होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते सिनेमाहॉल बंद होने की वजह से फिल्म के मेकर्स ने अब इसे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर रिलीज़ करने का फैसला किया है। 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया' अब डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज की जाएगी।

युद्धकाल में पराक्रम और रणनीतिक कौशल दर्शाने वाली इस फिल्म में अभिनेता अजय देवगन जहां स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक की भूमिका में हैं, वहीं संजय दत्त एक बेहद महत्वपूर्ण किरदार में दिखेंगे, यह किरदार है 'पगी' रणछोड़ दास सवाभाई रबारी का। निर्देशक अभिषेक दुधैया के निर्देशन में बनी फिल्म अजय देवगन और संजय दत्त के साथ सोनाक्षी सिन्हा, शरद केलकर, एमी विर्क, नोरा फतेही और प्रणीता सुभाष मुख्य भूमिकाओं में हैं। सोनाक्षी सिन्हा सुंदरबेन जेठा मधापारया के किरदार में हैं, जो युद्धकाल के बीच देश की खातिर जान जोखिम में डालने वाली अपने गांव माधापुर की 300 महिलाओं का हौसला बढ़ाने में जुटी रहीं। नोरा फतेही पाकिस्तान में रहने वाली एजेंट हिना रहमान के किरदार में नजर आएंगी।  साउथ इंडियन अभिनेत्री और मॉडल प्रणिता सुभाष इस फिल्म से अपना बॉलीवुड डेब्यू कर रही हैं। फिल्म का निर्माण टी-सीरीज़ के बैनर तले भूषण कुमार ने किया है।

फिल्म में दिखेगी स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक की शौर्य गाथा

फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया' 1971 के भारत - पाकिस्तान युद्ध के दौरान, वायुसेना के पराक्रम और शौर्य की कहानी बताएगी। फिल्म की कहानी भारतीय वायुसेना के स्क्वॉर्डन लीडर विजय कर्णिक के इर्द गिर्द घूमती है, जिन्होंने युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। विजय कार्णिक ही वह जांबाज अफसर थे, जिन्होंने पाकिस्तानी की बमबारी के बावजूद गुजरात के भुज स्थित एयरबेस को ऑपरेशनल रखा था। दरअसल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने भुज में भारतीय वायुसेना की हवाई पट्टी को तहस-नहस कर दिया था। उस वक्त स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक इस भुज एयरपोर्ट के इंचार्ज थे। उन्होंने बमबारी के बीच स्थानीय 300 महिलाओं की मदद लेकर इंडियन एयर फोर्स की उस एयर स्ट्रिप को दोबारा से तैयार कराया था। विजय कार्णिक ने अपने शौर्य के बूते तमाम दिक्कतों के बावजूद उस हवाई पट्टी से एयरफोर्स के ऑपरेशन को सुचारू रखा। जिसके चलते भारतीय सेना को अपने लक्ष्य को साधने में खासी मदद मिली।

1971 के भारत-पाक युद्ध में यह थी भुज की कहानी

स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक ने 1962 और 1965 के युद्धों में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी, लेकिन 1971 का युद्ध बेहद अलग था। 1971 के भारत-पाक युद्ध में कार्णिक भुज एयर बेस में बेस कमांडर थे। 3 दिसंबर, 1971 को युद्ध शुरू होने के बाद से उनका मिशन कराची के हवाई अड्डे, पेट्रोलियम डंप और नेवी डॉक को नष्ट करना था। पाकिस्तानी वायु सेना ने भुज एयर बेस को नष्ट करने के लिए 4 दिसंबर के बाद हर रात भुज पर भारी बमबारी की, लेकिन नाकाम रहा। 6 दिसंबर की रात भारतीय ने पाकिस्तानी बॉम्बर बी-57 को उड़ा दिया। उसके बाद पाकिस्तान ने हमले और बढ़ा दिए, 9 दिसंबर की रात पाकिस्तानी एयरफोर्स के आठ बॉम्बर्स ने हमला करके भुज एयर बेस को भारी नुकसान पहुंचाते हुए रनवे को नष्ट कर दिया। भुज एयर बेस बेकार हो चुका था और युद्ध के दौरान हर समय एयर बेस को चालू रखना बेहद जरूरी होता है।

युद्ध के दौरान यह एक बड़ा झटका था और उस वक्त रनवे की मरम्मत करने वाली टीम भी मौके पर नहीं थी। विपरीत हालात के बीच भी स्क्वॉर्डन लीडर कार्णिक ने हिम्मत नहीं हारी। युद्ध के विकट हालात में उन्होंने और कोई विकल्प नहीं दिखने पर स्थानीय ग्रामीणों की मदद लेने का निर्णय लिया। युद्धकाल में हर कोई देशभक्ति से ओतप्रोत था और सभी के दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जोश और जज्बा जोर-शोर से हिलोरे मार रहा था। और देशभक्ति की इसी भावना से ओतप्रोत होकर माधापुर गांव की 300 महिलाओं ने मदद के लिए सामने आने का हौसला दिखाया। युद्ध के बीच रनवे की मरम्मत करना बेहद जोखिम भरा काम था, लेकिन अपनी जान की परवाह न करते हुए भी ये महिलाएं डटी रहीं। नतीजतन विजय कार्णिक के मार्गदर्शन में उन्होंने रिकॉर्ड समय में यानी महज दो दिन में ही न केवल रनवे की मरम्मत की, बल्कि भुज एयर बेस को फिर से ऑपरेशनल करने का कारनामा कर दिखाया। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने इसी एयर बेस से अपने कई लक्ष्य सफलतापूर्वक साधते हुए पाकिस्तान को जोरदार नुकसान पहुंचाया। पाकिस्तानी हमले में तहस-नहस हो चुके एयर बेस को युद्धकाल के बीच अपनी सूझ-बूझ से कार्य योग्य बनाने का श्रेय न केवल स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक को गया, बल्कि सामरिक महत्व के इस मिशन को पूरा करने में अदम्य साहस दिखाने वाली भुज की स्थानीय महिलाओं को भी भरपूर सराहना मिली।

'पगी' रणछोड़ दास सवाभाई रबारी के किरदार में दिखेंगे संजय दत्त

फिल्म 'भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया' में संजय दत्त 'पगी' रणछोड़ दास सवा भाई रबारी का किरदार निभाएंगे, जो पैरों के निशान से किसी आदमी का ब्यौरा बता देता है। 'पगी' रणछोड़ दास सवाभाई रबारी ऐसे पहले आम शख्स हैं जिनके नाम पर भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने अपनी एक पोस्ट का नामकरण किया। दरअसल भारतीय सुरक्षा बलों की कई पोस्ट के नाम मंदिर, दरगाह और जवानों के नाम पर हैं, किन्तु रणछोड़ भाई पहले ऐसे आम इंसान हैं, जिनके नाम पर पोस्ट का नामकरण किया गया है। बीएसएफ ने वर्ष 2015 में उत्तर गुजरात के सुईगांव स्थित अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की अपनी एक पोस्ट को रणछोड़दास पोस्ट नाम दिया। पोस्ट पर रणछोड़ दास की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई।

'मार्गदर्शक' को आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है 'पगी'

'मार्गदर्शक' जिसे की आम बोलचाल की भाषा में 'पगी' या 'पागी' कहा जाता है वे ऐसे सामान्य नागरिक होते हैं जो दुर्गम क्षेत्र में पुलिस और सेना के लिए पथ पर्दशक का काम करते है। 'पगी' संबंधित क्षेत्र की भौगोलिक संरचना से भली-भांति वाकिफ होते हैं। उनकी खूबी यह भी होती है कि वे इलाके के चप्पे-चप्पे की जानकारी रखने के साथ ही पैरों के निशान से किसी इंसान की उंचाई-लंबाई, वजन और उसके आदमी-औरत होने का अंदाजा लगाने में माहिर होते हैं। रणछोड़ दास सवा भाई रबारी भी एक ऐसे ही इंसान थे।

पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से परेशान होकर आ बसे थे बनासकांठा

रणछोड़भाई अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी थे। पेथापुर गथडो विभाजन के चलते पाकिस्तान में चला गया। पशुधन के सहारे गुजारा करने वाले रणछोड़भाई पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से परेशान होकर बनासकांठा (गुजरात) में बस गए थे। एक शरणार्थी के रूप में आए रणछोड़ दास बनासकांठा पुलिस में 'मार्गदर्शक' यानी राह दिखाने वाले अर्थात 'पागी' के रूप में सेवारत रहे। जुलाई-2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी। जनवरी-2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई रबारी का निधन हो गया था।

जनरल सैम मानेक शॉ देते थे बहुत अहमियत

रणछोड़ दास ने भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 1971 के युद्ध में सेना का जो मार्गदर्शन किया, वह सामरिक दृष्टि से निर्णायक रहा। बता दें कि जनरल सैम मानेक शॉ भारतीय सेना के विभिन्न अभियानों को सफल बनाने में उल्लेखनीय योगदान देने के कारण 'पगी' रणछोड़ दास सवा भाई रबारी को बहुत अहमियत देते थे। रणछोड़ दास की सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति मेडल सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।


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