कोरोना महामारी कृषि क्षेत्र के लिए बनी मुसीबत

11-05-2020 12:03:53
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 कोरोना ने कैसे बिगाड़ी देश की अर्थव्यवस्था, उसकी बानगी बना  COVID-19 HOTSPOT चंद्रपुरा का तेलो

 

 

कोरोना महामारी कृषि क्षेत्र के लिए बनी मुसीबत

 

देश में करोड़ किसान हैं, देश के कृषि क्षेत्र की सेहत का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. देश की आधी से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है. इसलिए मुनाफा देने वाली उपज से खपत बढ़ती है  2019 में अत्यधिक बारिश के कारण गर्मी की फसल बर्बाद हो गई थी और किसान सर्दी की फसलों से उम्मीद लगाए बैठे थे कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोबारा उछाल मारेगी. हालांकि कोरोना वायरस के फैलने के बाद फसलों की कीमतें कमजोर हो गई हैं. एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था छह सालों में सबसे धीमी गति से बढ़ रही है. मक्का, सोयाबीन, कपास और प्याज जैसी फसलों की कीमत 50 फीसदी तक गिर गई है. बेमौसम बारिश और अब कोरोना की मार कोरोना वायरस के संक्रमण से अब कोई भी अछूता नहीं है चाहे वह उद्योग जगत हो या फिर कृषि जगत. भारत में किसान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और इस नई महामारी ने उनकी मुसीबतें और बढ़ा दी हैं |दिल्ली में आजादपुर मंडी में जनरल ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजेंद्र यादव ने  बताया है कि किसानों के पास से मंडी में आपूर्ति का सिस्टम व्यवस्थित नहीं है। उन्होंने कहा कि किसानों की माल ट्रांसपोर्टेशन की समस्या के चलते खेत से लेकर मंडी तक पहुंचाने के रास्ते में कई अड़चनें रही हैं इसके चलते आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। सब्जियों और फलों के लिए किसानों को पहले से ही कॉन्ट्रैक्ट दे दिया जाता है और उनके रख रखाव पर भी मेहनत की जाती है। देश में लॉकडाउन के चलते व्यवस्था पहले जैसी नहीं रही है जिससे सिर्फ सब्जियां बर्बाद हो रही हैं बल्कि आने वाले दिनों में उनकी उपलब्धता मंडियों में भी घटेगी। जैसे-जैसे कोरोना वायरस का संकट दुनियाभर में फैल रहा है वैसे-वैसे कृषि उत्पाद की कीमतों पर भी असर डाल रहा है और उधर सोशल मीडिया में मुर्गियों को लेकर फैली अफवाह के कारण पहले ही मुर्गियों के दाम गिर गए है. सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट वायरल हुए जिनमें कहा गया कि चिकन के कारण कोरोना वायरस फैलता  है. जिससे "चिकन की मांग घटने से नुकसान में रहने वाले पोल्ट्री मालिक मकई और सोयामील की खरीद में कटौती करने के लिए बाध्य हो गए हैं." कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में लागू लॉकडाउन के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने को 1.75 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की और इसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का नाम दिया है.हालांकि इसमें से किसानों के हाथ में कुछ खास नहीं आया है. मनरेगा मजदूरों को भी बड़ी निराशा हाथ लगी है.निर्मला सीतारमण ने कहा कि पीएम-किसान योजना के तहत अप्रैल के पहले हफ्ते में किसानों के खाते में 2,000 रुपये डाले जाएंगे. हालांकि ये कोई नई बात नहीं है और ही सरकार किसानों को कोई अतिरिक्त राशि दे रही है. पीएम किसान योजना के तहत अप्रैल में वैसे भी किसानों को पांचवीं किस्त के रूप में ये राशि दी जानी थी.पीएम-किसान योजना के तहत अभी भी बड़ी संख्या में किसानों को पूरी चार किस्त नहीं मिली है. अगर सरकार अतिरिक्त राशि नहीं भी देना चाहती थी तो वे ये सुनिश्चित कर सकते थे कि जिन किसानों को पूरी पांच किस्त अभी तक नहीं दी गई है, वो दे दी जाएगी. हालांकि वित्त मंत्री ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पीएम किसान के तहत देश में कुल 14.5 करोड़ अनुमानित लाभार्थी हैं. इसमें से राज्यों ने अभी तक कुल 9.89 करोड़ किसानों की जानकारी केंद्र को भेज दी है. इसमें से भी अभी तक कुल 9.22 करोड़ किसानों की जानकारियों का मूल्यांकन किया जा चुका है.पीएम किसान योजना के तहत अभी तक 8.82 करोड़ किसानों को पहली किस्त दी गई है. वहीं 7.82 करोड़ किसानों को दूसरी किस्त और 6.51 करोड़ किसानों को तीसरी किस्त दी गई है. सिर्फ 3.41 करोड़ किसानों को ही चौथी किस्त दी गई है और पांचवीं किस्त अप्रैल में दी जाएगी.यहां ये स्पष्ट है कि बड़ी संख्या में किसानों को पिछली किस्त भी नहीं दी गई है और वित्त मंत्री ने कहा कि अप्रैल में 8.7 करोड़ किसानों को पीएम किसान के तहत 2,000 रुपये दिए जाएंगे. इसका मतलब ये हुआ कि अभी तक कुल रजिस्टर्ड 9.89 करोड़ किसानों में से भी सभी को इसका लाभ मिलने की उम्मीद नहीं है.रबी फसल की समय पर खरीदी का बिल्कुल जिक्र नहीं कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में लॉकडाउन के चलते किसानों के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या ये है कि उनकी उपज को समय पर खरीदा जाएगा या नहीं? इस संदर्भ में तो वित्त मंत्री ने कोई जिक्र किया और ही किसी बजट की बात की गई कोरोना वायरस भीड़भाड़ वाले स्थान और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर फैलता है इसलिए ऐसे समय में रबी फसलों की खरीदी के लिए भारी संख्या में लोगों के इकट्ठा होने पर संक्रमण का खतरा काफी बढ़ सकता है.ऐसे समय में एक विकल्प ये बचता है कि गांव स्तर पर छोटे-छोटे खरीद केंद्र खोलकर एहतियात बरतते हुए इसकी खरीदी की जाए. जाहिर खरीद केंद्र खोलने के लिए बजट की जरूरत पड़ेगी.हालांकि वित्त मंत्री ने इस दिशा में कोई घोषणा नहीं की. इसके अलावा जिन उत्पादों के दाम तेजी से गिर रहे हैं, उनको सहायता देने के लिए कोई बजट नहीं दिया गया जबकी कृषि मंत्रालय ने फसलों की लागत का उचित मूल्य दिलाने वाली दो प्रमुख योजनाओं का बजट बढ़ाने की मांग की थी इसे  वित्त मंत्रालय ने खारिज कर दिया था. गेहूं, धान और मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा और मक्का) के अलावा अन्य कृषि उत्पादों क्रमश: दालें, तिलहन और कोपरा की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदी और उसके भंडारण के लिए दो प्रमुख योजनाओं- बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन प्रणाली (एमआईएस-पीएसएस) तथा प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा) के बजट में इस बार भारी कटौती की गई है.कुछ जानकारों के अनुसार कृषि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए एमआईएस-पीएसएस योजना का बजट 14,337 करोड़ रुपये तय करने की सिफारिश की थी, जो कि पिछले साल के 3,000 करोड़ रुपये के बजट के मुकाबले 11,337 करोड़ रुपये अधिक है.साथ ही वित्त वर्ष 2019-20 के लिए योजना के बजट को बढ़ाकर 8301.55 करोड़ रुपये करने की मांग थी. इसके अलावा पीएम-आशा योजना का बजट 1,500 करोड़ रुपये तय करने की मांग की गई थी.हालांकि वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग ने इन मांगों को खारिज कर दिया और वित्त वर्ष 2020-21 के लिए एमआईएस-पीएसएस योजना का बजट मात्र 2000 करोड़ रुपये और पीएम-आशा का बजट सिर्फ 500 करोड़ रुपये ही रखा. इसके अलावा एमआईएस-पीएसएस के लिए मौजूदा वित्त वर्ष का संशोधित बजट भी कृषि विभाग की मांग के उलट 2010.20 करोड़ रुपये ही रखा.ये बजट पिछले साल दी गई राशि से भी काफी कम है. वित्त वर्ष 2019-20 में एमआईएस-पीएसएस के तहत 3,000 करोड़ रुपये और पीएम-आशा के तहत 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.खास बात ये है कि कृषि मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में कहा था कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत आवंटित 75,000 करोड़ रुपये में से काफी राशि बच गई है, जिसे अन्य जरूरी योजनाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि वित्त मंत्रालय ने इस सिफारिश को भी खारिज कर दिया.एक तरफ सरकार समय पर खरीदी के संबंध में कोई घोषणा नहीं कर रही है, बीते 18 फरवरी 2020 को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किए गए 2019-20 के लिए फसल उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक गेहूं का 106.21 मिलियन टन उत्पादन होने की उम्मीद थी जो कि पिछले साल 2018-19 के दौरान 103.60 मिलियन टन के उत्पादन से ज्यादा है.इसके अलावा जौ का उत्पादन 18.8 लाख टन, चना का 112.2 लाख टन, मसूर का 13.9 लाख टन और सरसों का उत्पादन 91.13 लाख टन होने की उम्मीद है. ध्यान रहे कि दालें और तिलहन की खरीदी के लिए पीएम-आशा और एमआईएस-पीएसएस योजना महत्वपूर्ण है,जिसके बजट में भारी कटौती की गई है | जिससे साफ तौर पर कहा जा सकता है की किसानो के लिए कोई भी बजट नहीं दिया गया जिससे किसानो को राहत मिल सके | स्वराज इंडिया के अध्यक्ष एवं कृषि मामलों के जानकार योगेंद्र यादव ने कहा,‘जिन किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड के तहत लोन लिया था और लोन देने में देरी के कारण जो भी ऋण बढ़ रहा है उसे माफ किया जाना चाहिए लेकिन इसके संबंध में सरकार ने एक शब्द नहीं बोला और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित राहत पैकेज में मनरेगा मजदूरों की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया जा रहा है.सीतारमण ने कहा कि गरीब कल्याण योजना के तहत एक अप्रैल से मनरेगा मजदूरों को 20 रुपये बढ़ाकर दिया जाएगा. यानी कि मजदूरों को अब प्रतिदिन 182 के बजाय 202 रुपये मिलेंगे. हालांकि ये भी कोई नई बात नहीं है.महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) की धारा 6 के तहत भारत सरकार हर साल मनरेगा मजदूरों की प्रतिदिन मज़दूरी की दर में संशोधन कर इसे बढ़ाती है.खास बात ये है कि हाल ही में 23 मार्च को ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मज़दूरी दर को बढ़ाते हुए अधिसूचना जारी किया है और अधिकतर राज्यों की मज़दूरी दर निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तावित राशि से काफी ज्यादा है.जबकी 2020-21 के लिए घोषित नई मज़दूरी दर अधिकतर राज्यों में पहले से ही 202 रुपये से काफी ज्यादा है. वित्त मंत्री ने अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार लिया है | कृषि जगत से जुड़े लोगों ने राहत पैकेज में किसानों पर ध्यान देने को लेकर सरकार की आलोचना की है.

 
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