अमर शहीद स्मृति समारोह: गोलियां लगने पर भी नही गिरने दिया झंडा

23-09-2019 17:23:23
By :
Notice: Trying to get property 'fName' of non-object in /home/newobserverdawn/public_html/module/Application/view/application/index/news.phtml on line 23

Notice: Trying to get property 'lName' of non-object in /home/newobserverdawn/public_html/module/Application/view/application/index/news.phtml on line 23



विगत
21 सितम्बर को  दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में सन 1942 में मोहम्दाबाद में शहीद हुए 8 अमर शहीदों की स्मृति में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम गौरव संस्थान बिहार के संस्थापक और पूर्व विधायक डॉ स्वामीनाथ तिवारी ने की। इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश राय ने शेरपुर के बलिदानियों की गाथा को विस्तृत रूप दिया। विषय प्रवेश करते हुए अमर उजाला वाराणसी  के पत्रकार अजय राय ने अगस्त क्रांति के कारणों और उसके व्यापक प्रभाव की चर्चा करते 1857 की विफलता और 1942 की सफलता की बारीकियों की तरफ ध्यान आकृष्ट किया। काशी विद्यापीठ के प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इस घटना के साथ इतिहास ने न्याय नही किया आज इतिहास के पुर्नलेखन की जरूरत है हम अपने बुजुर्गों की शहादत को यू ही नही मिटने देंगे। महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्विद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय ने आज़ादी के आंदोलन को समावेशी बताते हुए इतिहास दृष्टि को साफ रखने की हिमायत किया।  राय के बात का जबाब देते हुए हिंदुस्तानी अकादमी प्रयाग के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हमे अपना इतिहास तब तक सांप्रदायिक और बौना लगता है जब तक हम उसे दूसरे के चश्मे से देखते है। हमे अपनी भावी पीढ़ी को अपने पूर्वजों का इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उदय प्रताप सिंह ने एक प्रस्ताव देते हुए कहा कि यदि यह आयोजन समिति गाज़ीपुर के शहीदों का इतिहास लेखन करेगी तो हिंदुस्तानी अकादमी उसे प्रकाशित करेगी। भारतीय भाषा केंद जेएनयू के अध्यक्ष प्रो ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि 'फक्र तो होता है पर दर्द भी देता है वो मंज़र' प्रो सिंह ने 1942 के आंदोनल पर व्यापक चर्चा करते हुए कहा कि डॉ शिवपूजन राय की दो पीढ़ियों को  हम देख रहे है इसलिए इतिहास लेखन संभव है। उन्होंने विवेकी राय और अमरकांत के उपन्यास स्वेतपत्र और इन्ही हथियारों से का हवाला देते हुए विषय को गति प्रदान किया। सभा की अध्यक्षता कर रहे डॉ स्वामीनाथ तिवारी ने 500 वर्षों के इतिहास और आंदोलन की विशद व्याख्या की और कहा कि जननी जन्मभूमि का भाव हर भारतीय में प्रबल होता है। डॉ तिवारी ने दिनकर की परशुराम की प्रतीक्षा में घायल सैनिक का उदाहरण देते हुए सत्ता प्रतिष्ठान को भी चेतावनी दी कि शहीदों के अरमानों को पूरा नही किया गया तो स्वदेश अपने ही घर में हार जाएगा। मंच का संचालन जेएनयू के शोधार्थी सूर्यभान राय ने किया । स्वागत भाषण आयोजन समिति के प्रमुख डॉ गोपालजी राय और धन्यवाद ज्ञापन राजीव रंजन राय ने किया। कार्यक्रम में तेज बारिश के बावजूद भी जेएनयू, डीयू और अन्य विश्वविधलयों के सैकड़ों शोधार्थी समेत शहीद परिवारों के परिजन भी मौजूद थे।


क्या है इन शहीदों के पीछे की कहानी

बताया जाता है कि 18 अगस्त 1942 को अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए डॉ शिवपूजन राय के नेतृत्व में एक आन्दोलन का हिस्सा थे. मुहम्मदाबाद में अंग्रेजों के खिलाफ इन 8 क्रांतिवीरों के आन्दोलन के बाद बलिया और गाजीपुर क्षेत्र आजाद हो गए थे. लेकिन शुरुआत में मुहम्मदाबाद को आजाद करवाने डॉ शिवपूजन राय और उनके साथी वंश नारायण राय, वंश नारायण राय द्वितीय, वशिष्ठ नारायण राय, ऋषेश्वर राय, राजा राय, नारायण राय, राम बदन उपाध्याय गाजीपुर के शेरपुर स्थित तहसील पर भी झंडा फहराने के लिए पहुंचे थे. उन्होंने ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्र होने की घोषणा भी पुरजोर तरीके से की. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत को उनका यह विरोध रास नही आया और मुहम्मदाबाद के निर्दयी तहसीलदारों ने भारत के इन 8 स्वतंत्रता सेनानियों पर गोलिया बरसा दी. अपनी क्रांतिकारी जज्बे के आगे इन 8 सपूतों ने अपने शरीर पर गोलियां खाने के बाद भी झंडे को जमीन पर नही गिरने दिया. इस तरह इन वीरों ने अपनी वीरता का परिचय दिया, जिसके बाद यह सदा के लिए भारतीय भूमि के लिए अपना रक्त दान करने के बाद अमर हो गए.


Comments

Note : Your comments will be first reviewed by our moderators and then will be available to public.

Get it on Google Play