एक मुलाकात डॉ. एसपी ओबरॉय के साथ

03-10-2019 16:08:43
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           "अपने मेहनत की कमाई को जरुरतमन्द की भलाई के लिए खर्च करना ही ईश्‍वर की असली पूजा है"
ये कथन सिखों के प्रथम गुरू गुरूनानक देव का है. दुनिया के लगभग सभी धार्मिक ग्रन्‍थों में इस तरह की बाते पढ़ने और सुनने को मिलती है. ये बातें पढ़ते और सुनते तो सभी हैं लेकिन इनपर अमल बहुत कम लोग कर पाते हैं. लेकिन आज हम जिस शख्सियत की बात करने वाले हैं उन्‍होंने गुरू नानक देव के इस वाक्‍य को अपने जीवन का मकसद बना लिया है. 

हम बात कर रहें है डॉ. एस पी सिंह ओबराय की जिन्‍होने अपनी कमाई का 98 फीसदी हिस्‍सा मानवता की सेवा के लिए डोनेट कर दिया है. डा. ओबराय का एक ट्रस्‍ट है जिसका नाम है सरबत दा भला चैरिटेबिल ट्रस्‍ट.
 इस ट्रस्‍ट के माध्‍यम से डा. ओबराय देश भर में मानवता की भलाई के लिए काम कर रहें है. गरीबों को पेंशन देने की बात हो, बेघर लोगो को घर देने की बात हो या फिर गंभीर बीमारी से पीडि़त लोंगो का मु्फ्त या बेहद कम दामों पर इलाज करवानाा हो. सरबत दा भला के दरवाजें हर जरूरतमंद इन्‍सान के लिए हमेशा खुले रहते हैं. डा. ओबराय ने अपनी जिन्‍दगी का एक एक पल मानवता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया है. मानवता के लिए उनके इसी समर्पण के कारण उन्‍हें देश- विेदेश में कई पुरूस्‍कारों से सम्‍मानित किया जा चुका है. 
डा ओबराॅॅय को वर्ल्ड साइंस क्रांगेस, यूनाइटिड नेंशन, हाउस आंफ लार्ड, लन्दन आदि जगहों से सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें ग्रैड प्रिक्स हुमानिटरियन एसोसियशन फ्रास की तरफ से गोल्ड मेडल भी मिल चुका है। वो ऐसे पहले इन्सान है जिन्हे इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ फंडामेंटल स्टडीज में समाज सेवा के क्षेत्र में सम्मानित किया गया है।

डा. ओबराय की जिन्‍दगी से जुड़े तमाम पहलुओं पर बात करने के‍ लिए हमारे रिर्पोटर इशात जैदी ने उनसे मुलाकात की. इस मुलाकात के दौरान उन्‍होने अपनी जिन्‍दगी से जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा की. इस बातचीत के कुछ अंश हम यहां पेश कर रहें हैं.

सवालजैसा की हम जिक्र कर चुकें है. आपने अपनी कमाई का 98 फीसदी हिस्‍सा मानव सेवा की भलाई के लिए डोनेट कर दिया है. हमे ये भी पता चला है कि आपने अपने कैरियर की शुरूआत डीजल मै‍केनिक के तौर पर की थी. अपनी शुरूआती जिन्‍दगी के बारे में कुछ बताइये.

डॉ ओबराॅॅय- जी आपने बिल्‍कुल सही कहा. मेरी पढ़ाई लिखाई पंजाब के एक छोटे से गांव होशियारपुर में हुई. फिर यहां से मैट्रिक करने के बाद मै हिमाचल प्रदेश चला गया. वहां मैने एक डैम पर डीजल मैकेनिक के तौर पर काम किया. मेरी पहली सैलरी मात्र 395 रूपये थी. 2 साल तक यही नौकरी की. मेरे पिता जी चाहते थे कि मै आगे की पढ़ाई करू लेकिन मै आगे नही पढ़ना चाहता था. जब पिता मेरी पढ़ाई को लेकर मुझ पर दबाव डालने लगे तब एक दिन मैने अपने पिता से बोला कि मै जा रहा हूं. अब कुछ करके ही वापस आऊगा. मेरी ये बात सुनकर मेरे पिता जी बोले कि बेटा तेरे पास कितने पैसे है.
उस वक्‍त मेरे पास केवल दो  सौ रूपये थे मैने वो पैसे अपना पिता जी को दिखाये. ये सुनकर पिता जी मेरे हाथ में 1000 रूपये रखे और बोले कि बेटा ये पैसे रख ले तेरे काम आयेगे. लेकिन अब घर तब ही लौटना जब कुछ बन जाना. बस यही से मेरा सफर शुरू हो गया.

सवाल-  फिर आप दुबई कैसे पहुंचे और कैसे आपने वहां इतना बड़ा बिजनेस एम्‍पॉयर खड़ा कर दिया.

डॉ ओबराॅॅॅय- दुबई मै डीजल मैकेनिक के तौर पर काम करने ही गया था. दुबई आकर मैने चीजों को समझना शुरू किया. मेरी शुरू से आदत रही है कि मै रिस्‍क लेने से कभी पीछे नही हटता. मुझे रिस्‍क लेने में मजा आता है. वही दुबई जाकर पहले एक होटल खोला फिर उसके दो तीन साल बाद दूसराा. इसी तरह से एक चेन बनती गई. ये सब करने में बहुत मेहनत और समय लगा. मैने जो किया वो अचानक नही किया. एक एक सीढ़ी चढ़ी है  तब जाकर मै यहां तक पहुंच पाया हूं.


सवाल- आप दुबई जाकर एक सफल बिजनेसमैन बन चुके थे. सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. एक सफल बिजनेस मैन से एक बड़े सामाज सेवी बनने की शुरूआत आपने कैसे और कब की. मतलब आपके अन्‍दर ये ख्‍याल कब पैदा हुआ कि आपको लोगो की मदद करनी चाहिए.

डा. ओबराॅॅय- इसके पीछे बहुत दिलचस्‍ब कहानी है. ये बात है 2010 की है. मै उस वक्‍त दुबई में थाा. मुझे अच्‍छे से याद है उस दिन 31 मार्च थी. मैने अखबार में एक न्‍यूज देखी जिसमें खबर थी कि दो गुटो की आपसी लड़ाई में 1 व्‍यक्ति की मौत हो गई है जिसकी वजह से 14 भारतीय को मौत की सजा सुनाई गई है. इस खबर ने मुझे अन्‍दर तक हिला दिया. मैने अखबार मेज रखा फिर उठाया. मैने उसे वक्‍त ये निश्‍चय कर लिया कि इन किसी भी हाल में मुझे इन 14 लोगो की जान बचानी है. मैने इस केस के बारे में रिसर्च करनी शुरू की. अपनी रिसर्च के दौरान मुझे पता चला कि मरने वाला पाक्सितान का था. मै पाकिस्‍तान गया और मरने वालों के परिजनों से बात की. फिर उन्‍हें लगभग 6 करोड़ रूपये ब्‍लड़ मनी के रूप में दिया. तमाम प्रयासों के बाद मै ये केस जीत गया फिर मैने उन 14 लोंगो को वापस इंडिया भेजने काा इन्‍तेजाम किया. इस केस के बाद मैने निश्‍चत कर लिया कि मुझे उन तमाम लोंगो के लिए कुछ करना है जो गरीबी और लाचारी की वजह से अपने जिन्‍दगी को सही ढ़ग से नही जी पा रहे हैं. तब से लेकर अब तक लगभग 90 ऐसे निर्दोष लोगो को जो दुबई के जेलों में सजा काट रहे थे, वापस अपने घर पहुंचा चुका हूं



सवाल- आपने सरबत दा भला चैरिटेबिल ट्रस्‍ट की शुरूआत कब की और इसके पीछे आपका क्‍या मकसद था.

डा. ओबराॅॅय-  इस ट्रस्‍ट की शुरूआत मैने 2011 में की थी. हुआ कुछ यूं था कि जब मै वापस अपने पिंड आया तो मैने देखा कि यहां के लोग बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रहें है. लोग बीमार है लेकिन इलाज के लिए पैसे ना होने के कारण वो अपना इलाज नही कर पा रहे. किसी के घर में कोई कमाने वाला नही है तो इतने कम पैैैैसे कमा रहा है कि अपना इलाज भी नही करवा सकता  . नौजवान बच्‍चे नशें की गिरफ्त में फसकर अपनी जवानी बर्बाद कर रहें है. ये सब देखकर मैने सोच लिया कि अब संगठित तरीके से इन सब की मदद करनी है. मैने ये ट्रस्‍ट बनाया और अपनी कमाई का लगभग 98 फीसदी हिस्‍सा इसमें टोनेट कर दिया.

सवाल- सरबत दा भला ट्रस्‍ट किस किस प्रोजेक्‍ट पर काम कर रही है और इसका विस्‍तार कहां कहां है.

डा. ओबराॅॅय- हमारे कई प्रोजेक्‍ट चल रहे है. ये ट्रस्ट देशभर में लगभग 26 लोक कल्याणकारी योजनायें चला रहा है जिसके अन्तर्गत लगभग 500 मेडिकल कैम्प हम लगा चुके है जहां गरीब लोगो की आंखों के चेकअप से लेकर कई अन्‍य गंभीर बीमारियां का इलाज होता है. ये सब पूरी तरह से या तो बिल्‍कुल फ्री है या मामूली फीस पर किया जा रहा है. इसके अलावा जो मरीज बीमारी की वजह से अस्‍पतालों में नही पहुंच पाते है उनको अस्‍पतालों तक लाने ले जाने के लिए हमने एम्‍बूलैन्‍स चलाई जा रही है. किडनी के मरीजों के लिए मात्र 400 रूपये में चेकअप की सुविधा दी जा रही है। इसके अलावा नेपाल में बेसहारा बच्चों के लिए अनाथालय चलाया जा रहा है। इसके अलावा भी इस ट्रस्ट के जरिये ऐसे बहुत सारे कार्य अन्जाम दिये जा रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध आम आदमी की जिन्दगी से है जैसे गरीब परिवारों को पेंशन देना, बेराजगारों नशे में गिरफ्त बच्‍चों के लिए नशा मुक्ति केंन्‍द्र. नशा छोड़कर वो अपनी जिन्‍दगी में कुछ करने लायक बने इसके लिए कम्‍पयूटर सेंटर, पढ़ाई में बेहतर करने वाले बच्‍चों के स्‍कॉलरशिप आदि कई सारे काम है जो हम अपनी ट्रस्‍ट के जरिये कर रहें है.

सवाल- आप इतने सारे काम कर रहें हैं, इसको मैनेज करने के लिए आपको काफी सारे लोगो की जरूरत पड़ती होगी. आप इतना सबकुछ मैनेज कैसे करते है.

डा. ओबराॅॅय- मुझे मैनेज करने की जरूरत नही पड़ती. मेरी पूरी टीम है जो एक परिवार की तरह काम करती है. इसमें रिटायर्अ अफसर है, टीचर है, डाक्‍टर्स है. ये सब लोग सेवा भाव से काम करते है. मै किसी को एक रूपया भी सैलरी के रूप में नही देता सब अपनी मर्जी से काम करते हैं. इस ट्रस्‍ट को चलाने के लिए मै किसी से एक रूपया भी फंड के तौर पर नही लेता. मै अपनी मेहनत जो भी कुछ कमाता हू उसको इस ट्रस्‍ट में लगा देता हूं. मेरे कोई बहुत बड़े शौक नही है एकदम सिम्‍पल रहता हूं. मेरी कमाई के 2 फीसदी पैसो में मेरा काम चल जाता है बाकि सारा पैसा इस ट्रस्‍ट के लिए है.



सवाल- आप एक मसीहा बनकर गरीबों की मदद कर रहें है इसलिए आपको लोग मसीहा के तौर पर भी जानते है. कैसा लगता है आपको जब आपकी वजह से किसी गरीब आदमी के चेहरे पर मुस्‍कान आती है.

डा. ओबराॅॅय- ये सब करके मुझे दिमागी सुकून मिलता है. मै अपनी जिन्‍दगी से पूरी तरह सतुष्‍ट रहता हूं. मुझे नींद अच्‍छी आती है. मुझे लगता है कि मै अपनी जिन्‍दगी में कुछ बेहतर कर रहा हू. ये फीलिग मुझे तब नही आती थी जब मै सिर्फ पैसा कमाने में लगा हुआ था.
तो ये थे डा. ओबराय जिन्‍होने सरबत दा भला चैरिटेबिल ट्रस्‍ट के रूप में एक ऐसा चिराग जलाया है  जिसकी रोशनी आज ना जाने कितनी जिन्‍दगियों को रौशन कर रही है. हमने अपने बात की शुरूआत गुरूनानक देव के एक वाक्‍य से कही थी और हम अपनी बात खत्‍म भी गुरूनानक देव के कथन से करेंगे. ये कथन डा. ओबराय पर भी एक सटीक बैठताा है. गुरू नानक देव ने कहा था.

जब भी किसी को मदद की आवश्यकता पड़े, हमे कभी भी पीछे नही हटना चाहिए   

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