कृषि सुधार पर हो-हल्ला!

13-10-2020 18:23:05
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सरकार का दावा ‘किसानों को अब मिली है असली आजादी’

विपक्ष का आरोप ‘अन्नदाता को  पूंजीपतियों के जाल में फंसा रही है सरकार’

कृषि सुधार संबंधी विभिन्न विधेयकों के पारित होने और उन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद सरकार का दावा है कि ‘किसानों को अब जाकर असली आजादी मिली है, वहीं खेती से जुड़े इन कानूनों को लेकर कांग्रेस समेत विपक्ष तमाम तरह के आरोप लगा रहा है और सत्तापक्ष के खिलाफ हमलावर मुद्रा में है। साथ ही कुछ किसान संगठन जहां इन कानूनों का समर्थन कर रहे हैं तो कई संगठन सड़कों पर उतर कर विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं अरसे से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा रहे अकाली दल ने तो कृषि से जुड़े विधेयकों का खुलकर विरोध करते हुए राजग सरकार से अलग होने का फैसला तक कर लिया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि नए कृषि कानून किसानों के लिए अहितकर साबित होंगे, क्योंकि इनके जरिए सरकार अन्नदाता को पूंजीपतियों के जाल में फंसा रही है। ऐसे में सवाल यही है कि कृषि सुधार संबंधी विभिन्न विधेयक किसानों के हित में हैं या सरकार के दावों के विपरीत ये देश के अन्नदाता के लिए नुकसानदायक सिद्ध होंगे। हमने अपने इस लेख के जरिए नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर सत्तापक्ष के दावों और विपक्ष के आरोपों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।

कृषि प्रधान देश भारत में अन्नदाता किसान आजादी के बाद भी बदहाली का शिकार रहा है। कृषि संबंधी विभिन्न कानूनों में बदलाव की मांग लगतार की जाती रही, लेकिन हुआ कुछ नहीं। तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा बार-बार लुभावने वादे और बढ़-चढ़कर दावे किए जाने के बावजूद कतिपय कारणों से अब तक ऐसा हो नहीं सका। हमारे किसान अन्नदाता हैं और देश में कृषि क्षेत्र से अधिक उत्पादन कोई नहीं करता, लेकिन अन्न उत्पादकों को यह तक तय करने का अधिकार नहीं था कि वे अपनी फसल कितनी कीमत पर कहां और किसे बेचें। अभी तक वह मंडी जाकर ही अपने उत्पाद को बेच सकते हैं, लेकिन नए कृषि कानूनों के माध्यम से किसानों को अपनी फसल की कीमत तय करने का पूरा अधिकार होगा और उसे बेचने के लिए उनके पास विस्तृत बाजार भी होगा।


यह हैं कृषि संबंधी नए कानून

केंद्र सरकार ने हाल ही में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020, आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 संसद में पारित कराए और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब ये नए कृषि कानून का रूप ले चुके हैं। इनमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून के तहत किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकेंगे, इससे उन्हें बेहतर दाम मिलेंगे। मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता कानून किसानों की आय बढ़ाने में कारगर साबित होगा, इससे बिचौलिए खत्म होंगे और आपूर्ति चेन तैयार की जा सकेगी। इसके साथ ही आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून बनने के बाद अब अनाज, दलहन, खाद्य तेल, आलू-प्याज आदि अनिर्वाय वस्तु नहीं रहेगी, इनका भंडारण किया जा सकेगा, इससे कृषि में विदेशी निवेश आकर्षित होगा।

किसान हित में मोदी सरकार ने लिए हैं कई बड़े फैसले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत सरकार के विभिन्न मंत्रियों और भाजपा नेताओं द्वारा दावा किया जा रहा है कि ऐतिहासिक कृषि विधेयकों के पारित होने से किसानों की आय दोगुनी होगी और साथ ही उनके हित भी सुरक्षित रहेंगे। मोदी सरकार बनने के बाद से कृषि क्षेत्र में चौतरफा विकास हो रहा है। बीते दिनों मोदी सरकार ने किसानों के हित में कई बड़े फैसले लिए हैं। वर्ष 2009-10 में जहां देश में कृषि मंत्रालय का बजट महज बारह हजार करोड़ रुपए था, अब यह एक लाख चौतीस हजार करोड़ रुपए हो चुका है। केंद्र सरकार ने एमएसपी में भी बढ़ोतरी की है, वहीं राज्यों को योजनाओं में ज्यादा फंड दिया जा रहा है। कृषि को बढ़ावा देने के क्रम में एक लाख करोड़ रुपये के एग्री इंफ्रा फंड की शुरूआत की गई है। प्रधानमंत्री जी ने 6,850 करोड़ रुपये के बजट से दस हजार नए एफपीओ बनाने की स्कीम शुरू की है। साथ ही आत्मर्निभर भारत अभियान में अन्य सम्बद्ध क्षेत्रों को भी पैकेज दिए गए हैं। छोटी जोत वाले किसानों को किसान सम्मान के रूप में छह हजार रुपए प्रति वर्ष मानदेय भी दिया जा रहा है।

नए कृषि कानूनों को लेकर विपक्षी दलों द्वारा देशभर में हो-हल्ला मचाए जाने के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का कहना है कि कृषि सुधार न केवल किसानों को ही आर्थिक रूप से सुदृढ़ करेंगे, बल्कि देश के समग्र विकास का भी आधार बनेंगे। कृषि क्षेत्र ने कोरोना संकट के विपरीत दौर में भी देश की जीडीपी में सकारात्मक योगदान दिया है। दावा है कि वर्ष 2024 तक भारत को पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने में कृषि क्षेत्र का प्रमुख योगदान रहेगा। देश में 85 प्रतिशत छोटे किसान हैं, जिनके पास गांवों तक निजी निवेश पहुंचने से ही नई कृषि क्रांति का सूत्रपात होगा। नए कृषि विधेयकों से व्यापारी और किसानों के बीच की दूरी कम होगी। उन्होंने कहा कि कृषि विधेयक के बाद किसानों के उपज की खरीद के लिए व्यापारी खुद उनके घर तक आएंगे। पहले किसान कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) द्वारा निर्धारित दर पर अपनी फसल बेचने के लिए बाध्य थे और अब वे अपनी उपज कहीं भी बेच सकेंगे।

विशेषज्ञ जता रहे मामूली संशोधन की आवश्यकता

कृषि क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो खेती संबंधी नए कानूनों में मामूली संशोधन की आवश्यकता है। इन्हें लेकर विपक्षी दलों द्वारा मचाया जा रहा हो-हल्ला दरअसल राजनीतिक माइलेज हासिल करने का शगूफा भर है। उनका कहना है कि सरकार को सिर्फ इतना संशोधन भर करना है कि कोई भी व्यापारी किसान की फसल को सरकार के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम पर नहीं खरीद सकेगा। मतलब यह कि किसान अपने घर-बाजार में फसल बेचे या कहीं दूसरी जगह लेजाकर बेचे उसे उस फसल का कम से कम न्यूनतम मूल्य जरूर मिलेगा। एमएसपी की इस बाध्यता से  बड़े-छोटे सभी किसानों की अधिकांश समस्याएं हल हो जाएंगी।

फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी किसी फसल का वह दाम होता है जो सरकार बुवाई के वक्त तय करती है। इससे किसानों को फसल की कीमत में अचानक गिरावट के प्रति सुरक्षा मिलती है। बाजार में अगर फसल के दाम कम होते हैं तो सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर किसानों से फसल खरीद लेती हैं। केंद्र सरकार के मुताबिक, नया कृषि कानून बनने के बाद किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाएगा। सरकार ने साफ किया है कि मंडी के साथ ही सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। कृषि मंत्री की मानें तो नए कृषि कानून से मंडियां भी प्रतिस्पर्धी होंगी और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा। साथ ही राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेगी। राज्य के लिए एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) ऐक्ट है, यह नए कृषि कानूनों में उससे बिल्कुल भी छेड़-छाड़ नहीं की गई है।

विपक्षी दलों का आरोप, किसानों का हक मारने और जमीनें छीनने है साजिश

बेशक विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि नए कृषि कानूनों के जरिए किसानों का हक मारने और उनकी जमीनें छीनने साजिश की जा रही है। कांग्रेस समेत अधिकांश विपक्षी दल सरकार को किसान विरोधी करार दे रहे हैं। आरोप है कि सरकार कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग के जरिए एमएनसी को फायदा पहुंचाना चाहती है।

हालांकि नए नियमों के मुताबिक किसान अपनी फसल को अपने मन मुताबिक दाम पर, अपनी मन माफिक मण्डी या शहर या गांव में जाकर बेचने को आजाद होगा। छोटे किसान यानी कम जोत वाले मतलब जिनके पास 2-3 एकड़ से ज्यादा खेतीहर जमीन नहीं है, ऐसे किसानों के सामने कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग का विकल्प है। दरअसल केंद्र की राजग सरकार के खिलाफ कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों और विरोधी तत्वों को कोई मुद्दा नहीं मिल पा रहा है। कुछ मुद्दे जो विपक्षी राजनीतिक दलों ने बनाए उन्हें जनसमर्थन नहीं मिल सका। खेत-खलिहान किसान का सबसे संवेदनशील पक्ष होता है और अधिकांश किसानों के कम पढ़ा-लिखा या निरक्षर होने के चलते उनसे संबंधित विषयों के बारे में भ्रम फैलाना आसान है।

प्रधानमंत्री मोदी ने किया किसानों को आश्वस्त

प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों के खेल को समझ लिया है और कृषि कानूनों को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार से निपटने की कमान अपने हाथ में ले ली। प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को लेकर किसानों से उनपर भरोसा करने की अपील की है। उन्होंने दावा किया है कि इस कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे। प्रधानमंत्री ने किसानों से कहा है कि उन्हें भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी, ये विधेयक वास्तव में किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं।

संसद की गरिमा को किया तार-तार

कृषि सुधार के महत्वपूर्ण विधेयकों को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में जो कुछ भी हुआ उसे काला अध्याय ही कहा जाएगा। इससे पहले किसी महत्वपूर्ण विधेयक को लेकर सदन में विपक्ष ने इस तरह हंगामा नहीं मचाया। राज्यसभा में तो आसंदी पर चढ़कर बिल की प्रतियां फाड़ी गईं और उपसभापति के माइक उखाड़ने का प्रयास किया। सरकार को घेरने के चक्कर में लगे विपक्षी नेताओं की इन हरकतों ने संसद की गरिमा को तार-तार करने का काम किया है। इस कार्य में तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रॉयन और आमआदमी पार्टी के संजय सिंह समेत कई सांसद शामिल रहे।  इतना ही नहीं विभिन्न विपक्षी दल अब भी देश के विभिन्न सूबों में न केवल नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन छेड़े हुए हैं, बल्कि गैर राजग शासित राज्यों में तो इसके खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाए जाने की तैयारी है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तो केंद्र में अपनी सरकार बनने पर इन कानूनों को खारिज करने तक का ऐलान कर चुके हैं।

अपने पांव पर जानबूझकर कुल्हाड़ी क्यों मारेगी सरकार

सर्वविदित तथ्य है कि भारत में अब भी लगभग 84-85 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्र में रहता है यानी खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है। इनमें से यदि 15-20 फीसदी बड़े किसानों को छोड़ दें तो शेष बचे छोटे किसान मतदाता अपनी संख्याबल के बूते  चुटकियों में सरकार बनाने-बिगाड़ने का खेल कर सकते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह तथ्य सरकार में बैठे लोगों यानी नेताओं को नहीं मालूम, यह सब जानते-समझते हुए सरकार अपने पांव पर जानबूझकर कुल्हाड़ी मारने का काम क्यों करेगी? बहरहाल राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद देश में लागू होने वाले ये नए कृषि सुधार कानून देश के अन्नदाता किसानों को फायदे का सौदा बनेंगे या फिर उनके लिए नुकसानदायक सिद्ध होंगे, यह तो अभी भविष्य में ही पता चलेगा।


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