महामारी नहीं नए युग का 'युद्धक अस्त्र' है 'कोरोना विषाणु'

19-05-2021 17:56:51
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महामारी नहीं नए युग का 'युद्धक अस्त्र' है 'कोरोना विषाणु'



ड्रैगन का मारक जैविक हथियार, चहुंओर मचा है हा-हाकार

कोरोना विषाणु संक्रमण महामारी की दूसरी लहर ने देशभर में हा-हाकार मचा रखा है। चिकित्सा विज्ञानी और विषय विशेषज्ञ कोविड-19 की तीसरी लहर आने की आशंका भी जता चुके हैं। ऐसे में प्रश्न उठना अवश्यंभावी है क्या भारत के विरुद्ध कोई 'जैविक युद्ध' तो नहीं छेड़ दिया गया है, जिसके कारण एकाएक चिकित्सा तंत्र ध्वस्त होने से चहुंओर हा-हाकार मच गया है। दरअसल देशी-विदेशी समाचार तंत्र और विभिन्न डिजिटल मीडिया मंचों पर प्रसारित-प्रकाशित खबरों पर यकीन करें तो विश्वभर में फैली महामारी कोविड-19 यानी कोरोना विषाणु संक्रमण महामारी नहीं, बल्कि हमारे पड़ोसी और धुर विरोधी देश चीन की तरफ से छेड़ा गया जैविक युद्ध है, जिसे वह 'गुरिल्ला वार' की बार-बार आजमाने में लगा है। ड्रैगन का यह मारक जैविक हथियार अब घातक रूप धारण करते हुए चहुंओर हा-हाकार मचा रहा है। जी हां चौंकिए नहीं यह तो आप बखूबी जानते ही हैं कि कोरोना वायरस चीन के वुहान शहर से निकलकर पूरे विश्व में फैला है।

चीनजन्य इस जानलेवा विषाणु ने करीब डेढ़ वर्ष से विश्वभर में मानवीय जीवन को संकट में डाल रखा है। अब तक पूरी दुनिया में करीब 17 करोड़ लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं और करीब 35 लाख लोगों की जान जा चुकी है। भारत में कोविड-19 से संक्रमितों का आंकड़ा लगभग ढाई करोड़ से अधिक है और कोरोना से हुई मौतों की संख्या तीन लाख की दहलीज पर पहुंच चुकी है। बीते कुछ महीने से कोरोना वायरस की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है, जो कि पहले के मुकाबले कहीं अधिक जानलेवा है। इतना ही नहीं चिकित्सा विज्ञानी और विषय विशेषज्ञ कोविड-19 के तीसरे वार का पूर्वानुमान जाहिर कर चुके हैं। दूसरी लहर से मची हायतौबा और तीसरी लहर आने की आशंका के बीच ऐसी खबरे सामने आ रही हैं कि कोरोना वायरस चीन का जैविक युद्ध संबंधी प्रयोग है।

'अकस्मात घटित संयोग नहीं, बल्कि सुनियोजित प्रयोग'

कोरोना विषाणु को लेकर इस बीच कुछ ऐसी खबरें भी पब्लिक डोमेन में तैर रही हैं कि यह महामारी 'अकस्मात घटित संयोग नहीं, बल्कि सुनियोजित प्रयोग' है। यह ड्रैगन यानी चीन द्वारा मानवता के विरुद्ध सोच-समझकर छेड़ा गया 'जैविक युद्ध' यानी 'बॉयोवॉर' है। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि चीनी वैज्ञानिकों ने कोविड-19 वायरस संक्रमण महामारी से करीब पांच साल पहले कोरोना विषाणु को बतौर जैविक हथियार इस्तेमाल करने को लेकर शोध किया था। साथ ही उन्होंने तृतीय विश्व युद्ध में जैविक अस्त्रों का प्रयोग किए जाने का पूर्वानुमान भी लगाया था। डिजिटल मीडिया पर कुछ ऐसे दस्तावेजों को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है जिनसे खुलासा होता है कि चीन करीब पांच साल से कोरोना विषाणु को जैविक अस्त्र की तरह अपने विरोधियों पर वार करने की तैयारी में जुटा था, जिससे कि उनके अर्थतंत्र और चिकित्सा तंत्र को ध्वस्त करके उन्हें आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से कमजोर करके उसका फायदा उठाकर अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ा सके।

कोरोना विषाणु संक्रमण महामारी का प्रकोप कहां से शुरू हुआ और यह कैसे विश्वभर में फैला इस संदर्भ में तमाम तरह के तथ्य बीते करीब डेढ़ साल से चर्चा का विषय बने हुए हैं, लेकिन बीते दिनों इससे जुड़े कुछ हैरतअंगेज खुलासा करने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। चीन के वुहान स्थित प्रयोगशाला में कार्य कर चुकी डॉ.यान ने बीते साल जब खुलासा किया था कि कोरोना वायरस वुहान की लैब से ही निकला है तो तब किसी ने भी उस पर भरोसा नहीं किया, लेकिन अब करीब सवा-डेढ़ साल बाद इसे लेकर नए खुलासे होने शुरू हो गए हैं। 'द वीकेंड ऑस्ट्रेलियन' नामक पत्रिका में प्रकाशि एक रिपोर्ट में भी दावा किया गया है कि कोरोना वायरस चीन की लैब से निकला जैविक हथियार है।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अमेरिका के विदेश विभाग को कुछ ऐसे दस्तावेज मिले हैं जिनके हवाले से दावा किया जा रहा है कि 'कोरोना विषाणु' नए युग का 'युद्धक अस्त्र' है। कहा जा रहा है कि उक्त दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि चीनी वैज्ञानिकों ने 'सार्स कोरोना वायरस' का उल्लेख 'नए युग का जैविक हथियार' के रूप में किया था और कोविड-19 उसका ही एक उदाहरण है। दस्तावेजों के हवाले से यह अंदेशा भी जताया जा रहा है कि इस संभावना से भी कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्ष 2003 में चीन में फैला सार्स वायरस संक्रमण मानव निर्मित एक जैविक अस्त्र हो सकता है, जिसे सोच-समझकर फैलाया हो। अमेरिका को मिले दस्तावेजों के हवाले से कहा जा रहा है चीन के वैज्ञानिक अब से करीब छह साल पहले यानी वर्ष 2015 से सॉर्स कोरोना वायरस को बतौर जैविक हथियार इस्तेमाल को लेकर अपने शोध में जुटे हुए थे।

कुछ ज्यादा ही घातक और मारक है 'ड्रैगन का मिशन'

अमेरिका को मिले कोरोना संबंधी गुप्त दस्तावेज कहें कि सीक्रेट कोविड डोजियर के 18 लेखकों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से जुड़े वैज्ञानिक, स्वास्थ्य अधिकारियों और हथियार विशेषज्ञ भी शामिल हैं। इस डोजियर में बीमारी के साथ छेड़छाड़ करके एक ऐसे हथियार को बनाने के लिए शोध किए जाने का विवरण है, जैसा कि पहले कभी नहीं देखा गया हो। इन दस्तावेजों में इस जैविक अस्त्र का इस्तेमाल करने का तरीका, समय, मौसम आदि को लेकर विस्तार से जिक्र किया गया है। बताया गया है कि कौन सी स्थितियों-परिस्थितियों में इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिससे कि यह अधिक से अधिक मारक साबित हो सके। कारगर इस्तेमाल के लिए इसे रोशन दिन में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि सूर्य का ताप इसके रोग-जनकों को प्रभावहीन कर सकता है, जबकि वर्षा या बर्फबारी इसकी दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में हवा रहित शांत समय में ही इस जैविक अस्त्र के माध्यम से लक्ष्य को सटीक रूप में साधा जा सकता है। इतने गहन विवरण का अर्थ यही निकलता है कि 'ड्रैगन का मिशन' कुछ ज्यादा ही घातक और मारक है।

चीन में वुहान शहर ही रहा कोरोना प्रकोप से सबसे अधिक प्रभावित

पूरा विश्व जानता है कि अपने प्रकोप दुनियाभर के देशों में त्राहिमाम मचाने वाले कोरोना वायरस का संक्रमण सबसे पहले चीन के औद्योगिक शहर वुहान में फैला था। वर्तमान स्थितियों को देखते-समझते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने इस 'जैविक युद्ध' का पहले वार करने के लिए सोच-समझकर अपने औद्योगिक शहर को एक लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल करते हुए कोरोना वायरस फैलाने का केंद्र बनाया। वुहान शहर को कोराना वायरस प्रकोप का केंद्र बिंदु इसलिए बनाया गया क्योंकि यहा दुनिया भर के लोग काम करते हैं। ज्ञातव्य है कि वुहान को यदि छोड़ दें तो चीन के अन्य नगरों-क्षेत्रों में कोविड-19 संक्रमण का प्रकोप बेहद कम रहा, जबकि विश्व के अन्य देशों में कोरोना विषाणु ने तांडव मचा कर रख दिया।

विश्व के देश संभले भी नहीं थे और चीन ने उतार दी थी अपनी वैक्सीन

कोरोना के मानव निर्मित यानी जैविक अस्त्र मानने की एक प्रमुख यह भी है कि जब शुरूआती दौर में पूरी दुनिया कोविड-19 के प्रकोप से जूझ रही थी तब इस विषाणु के जन्मदाता कहे जा रहे चीन ने अपनी कोरोनारोधी वैक्सीन भी बाजार में उतार दी थी। चीन के इस कदम से पूरी दुनिया आश्चर्यचकित रह गई थी, क्योंकि तब तक कोरोना विषाणु को लेकर व्यापक विश्लेषण भी शुरू नहीं हुआ था। विश्वभर के वैज्ञानिक वायरस को लेकर अध्ययन करके वैक्सीन पर शोध ही कर रहे थे। उधर चीन ने कोरोना वैक्सीन बाजार में बेचनी भी शुरू कर दी थी। चीन के इस रवैए से तब भी ऐसे कयास लगाए गए थे कि यह कोरोना वायरस का यह संक्रमण ड्रैगन की एक सुनियोजित साजिश है।

इतना ही नहीं चीन ने वुहान शहर में सबसे पहले कामकाजी बंदिश (लॉकडाउन) लागू की थी। तब विश्व के कई देशों को हैरत हुई थी आखिर चीन को यह कैसे मालूम हुआ कि लॉकडाउन करके कोरोना महामारी पर काबू पाया जा सकता है। चीन ने इस कामकाजी बंदिश के बीच ही अपने समस्त नागरिकों को वैक्सीन लगाकर भी पूरी दुनिया को चौंका दिया था। चीन का यह वैक्सीनेशन अभियान चन्द महीनों में ही पूरा हो गया था। चीन ने न सिर्फ सबसे पहले टीकाकरण करके अपने नागरिकों का बचाव किया, बल्कि विश्व के विभिन्न देशों को कोरोना संक्रमण से बचाव को पीपीई किट, मास्क, दास्ताने, फेशशील्ड, सेनिटाइजर, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसरट्रेटर आदि के साथ ही भारी मात्रा में वैक्सीन की आपूर्ति भी की।

कोरोना की जन्मस्थली चीन में हालात जहां बहुत तेजी से सामान्य हो गए, वहीं विश्व के अन्य अधिकांश देश अभी इस महामारी के संक्रमण से जूझ रहे हैं और अपने नागरिकों को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के नित-नए वेरिएंट उभर कर सामने आ रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि कोरोना के नए वेरिएंट अपडेट किए जा रहे हैं, जिससे कि दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारें अपने स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने में जुटें और कामकाज ठप्प होने से उनकी अर्थव्यस्था चौपट हो जाए।

डब्ल्यूएचओ की भूमिका रही है संदिग्ध

कोविड-19 संक्रमण महामारी के मामले में अंतर्राष्ट्रीय संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की भूमिका शुरूआती दौर से ही संदिग्ध मानी-समझी जाती रही है। डब्ल्यूएचओ महासचिव एंटोनियो गुटेरस पर भी उंगलियां उठती रही हैं। होने को डब्ल्यूएचओ की एक टीम कोरोना की जन्म स्थली माने-बताए गए चीन के वुहान शहर स्थित विषाणु प्रयोगशाला की जांच करने पहुंची, लेकिन ड्रैगन ने ऐसा नहीं करने दिया। उसके बाद से डब्ल्यूएचओ के पदाधिकारी हाथ पर हाथ धरकर बैठ गए, जबकि पूरा विश्व कोरोना विषाणु से त्राहिमाम कर रहा है। बीते कुछ महीने से भारत में तो इस महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया है और रोजाना लाखों-लाख संक्रमित बढ़ रहे हैं। इसके ऐन उलट कोरोना जनक चीन में हालात पूरी तरह से सामान्य हैं और कोरोना नगरी वुहान में भी जिन्दगी संक्रमणकाल से पहले की स्थिति में लौट आई है।

भारत के नीतिगत निर्णयों से चीन के आर्थिक और सामरिक हित हुए प्रभावित

भारतीय परिपेक्ष में देखा-कहा जाए तो दरअसल वर्तमान भारत सरकार के विगत कुछ वर्षो के निर्णयों-नीतियों का चीन पर प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव पड़ा और सीमा पर बढ़ती भारतीय सैन्य शक्ति के कारण चीनी सेना को कई बार मुंह की खानी पड़ी। सीमा पर उसे कई स्थानों से पीछे हटना पड़ा। इसके अलावा आर्थिक मोर्चे पर भी भारत के विभिन्न नीतिगत निर्णयों के परिणाम स्वरूप चीन को खासा झटका लगा है। ऐसे में इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि विस्तारवादी चीन अपने कारोबारी और सामरिक विस्तारवाद को धार देने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

कोरोना वायरस के लिहाज से देखें तो भारत ने कोविड-19 महामारी के पहले दौर को अपने त्वरित निर्णयों-नीतियों और व्यवहार से समय रहते ही परास्त करने में कामयाबी हासिल कर ली थी। साथ ही चिकित्सा क्षेत्र से संबद्ध कई मामलों में आत्मनिर्भर बनने की तरफ कदम बढ़ा दिए थे, लेकिन तभी देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने हा-हाकार मचाकर रख दिया। कहा जा रहा है कि कोरोना-1.0 (पहली लहर) के बाद भारत की यही विजय व प्रगति ड्रैगन को रास नहीं आई और उसने अपनी प्रयोगशाला के तरकश से दूसरा अस्त्र कोरोना-2.0 छोड़ दिया।   

कोविड-19 का समयबद्ध प्रकोप के कारण भी है सुनियोजित जैविक युद्ध का अंदेशा

कोविड-19 का समयबद्ध प्रकोप पहले अक्टूबर 2019 में पहली लहर शुरू हुई, फिर दिसम्बर 2020 में दूसरा दौर और अब अक्टूबर 2021 में तीसरी लहर आने का अंदेशा जताया जा रहा है। इस समयबद्ध संक्रमण को देखते हुए भी माना जा रहा है कि यह वायरस प्रकोप कहीं कोई सुनियोजित जैविक युद्ध तो नहीं है। मीडिया की कुछेक रिपोर्ट इस अंदेशे की पुष्टि करते भी दिखती हैं। कुलमिलाकर कोरोना को ड्रैगन का जैविक हमला मानने की कई ठोस और बड़ी वजह हैं। दरअसल चीन के साम्यवादी शासन के विस्तारवादी रवैए के चलते भारत समेत कई पड़ोसी देशों से उसका विवाद चल रहा है और कईयों के साथ तो तनाव इस कदर बढ़ चला है कि सीमाओं पर आए दिन युद्ध जैसे हालात बन जाते हैं। शातिर चीन अपना हित साधने और वर्चस्व बनाए रखने को साम, दाम, दंड, भेद नीति का हर हथकंडा अपनाने में पहले से ही माहिर है। ऐसे में कोविड विषाणु को विश्व का एक वर्ग ड्रैगन का जैविक हथियार मान-समझ रहा है।

मीडिया में दावा किया जा रहा है कि अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने 'कोरोना विषाणु' को बतौर जैविक हथियार इस्तेमाल किया है, जिससे कि विरोधी-प्रतिद्वन्द्वी देशों के आथिर्क ढांचे और चिकित्सा तंत्र को छिन्न-भिन्न किया जा सके। सर्वविदत है कि वर्तमान में भारत और अमेरिका संग विभिन्न सामरिक, व्यापारिक और कूटनीतिक विषयों पर चीन का मतभेद चल रहा है। साथ ही अन्य कई प्रमुख देशों से भी चीन का विवाद जारी है। चीन जहां अमेरिका संग चल रहे कारोबारी युद्ध को नियंत्रित करके हर हाल में अपने पक्ष में करना चाहता है। अब तक उजागर हुए विभिन्न तथ्य इंगित करते हैं कि कोरोना महामारी के विश्वव्यापी प्रकोप के मूल में चीन का ही खेल काम कर रहा है। तमाम तथ्यों को देखते हुए जरूरत इस बात की है कि अब सम्पूर्ण विश्व बिरादरी को एकजुट होकर कोरोना के जनक चीन के विरुद्ध आना होगा। साथ ही भविष्य में जैविक अस्त्रों या ऐसे किसी जैविक युद्ध से निपटने को भी युद्ध स्तर पर व्यापक और कारगर तैयारी अभी से करनी होगी।



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