कोरोना उपचार को दवा का इंतजार हुआ ख़त्म : भारत ने दिखाई जीने की राह

25-06-2020 12:50:38
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कोरोना का कहरः जानलेवा वायरस की दवा ...

कोरोना उपचार को दवा का इंतजार हुआ ख़त्म : भारत ने दिखाई जीने की राह

पतंजलि ने लॉन्च की कोरोना की दवाएं, 100 फीसदी असरदार होने का दावा

ग्लेनमार्क फ़ार्मा कंपनी ने फ़ैबिफ़्लू नाम की दवा को कोरोना महामारी को मात देने के लिए किया तैयार

 

दुनियाभार में इस वक्त कोरोना वायरस की महामारी को खत्म करने के लिए दवाएं बनाने का काम तेजी से चल रह है। वहीँ पतंजलि ने भी कोरोना की दवा लॉन्च की है, तथा 100 फीसदी असरदार होने का दावा किया है।

योग गुरू ने कहा कि इस आयुर्वेदिक दवाई का नाम कोरोनिल है। इससे तीन दिन के अंदर 65 फीसदी रोगी पॉजिटिव से नेगेटिव हो गए। कई बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनियां इस दौड़ में शामिल हैं। इस बीच बाबा राम देव ने कोरोना का इलाज करने के लिए तीन दवाओं को लॉन्च किया है। योगगुरु की पतंजलि कंपनी का दावा है कि उन्होंने इस महामारी को मात देने वाली दवा तैयार कर ली है। मंगलवार को प्रेस वार्ता में बाबा रामदेव ने कहा कि दुनिया इसका इंतजार कर रही थी कि कोरोना वायरस की कोई दवाई निकले। आज हमें गर्व है कि कोरोना वायरस की पहली आयुर्वेदिक दवाई को हमने तैयार कर लिया है। दवा अगले हफ्ते तक बाजार में उपलब्ध हो जाएगी।

योग गुरू ने कहा कि इस आयुर्वेदिक दवाई का नाम कोरोनिल है। उन्होंने कहा कि हमने क्लीनिकल कंट्रोल स्टडी की, सौ लोगों पर इसका टेस्ट किया गया। तीन दिन के अंदर 65 फीसदी रोगी पॉजिटिव से नेगेटिव हो गए। योगगुरु रामदेव ने कहा कि सात दिन में सौ फीसदी लोग ठीक हो गए, हमने पूरी रिसर्च के बाद इसे तैयार किया है। दवा का रिकवरी रेट 100 परसेंट है। वहीँ भारत में ग्लेनमार्क फ़ार्मा कंपनी ने फ़ैबिफ़्लू नाम की दवा को कोरोना महामारी को मात देने के लिए तैयार कर ली है। फ़ैबिफ़्लू एक रीपर्पस्ड (Repurposed Drug) दवा है. इसका मतलब ये है कि इस दवा का इस्तेमाल पहले से फ़्लू की बीमारी के इलाज में किया जाता रहा है. रेमडेसिवियर की ही तरह ये भी एक एंटीवायरल दवा है. इस दवा को बनाने वाली फ़ार्मास्युटिकल कंपनी ग्लेनमार्क का दावा है कि कोविड-19 के माइल्ड और मॉडरेट मरीज़ों पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है ये शर्त है- इस दवा का केवल इमरजेंसी में और रेस्ट्रिक्टेड इस्तेमाल करने के लिए है।  इमरजेंसी इस्तेमाल का मतलब ये है कि कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान इस दवा के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाज़त है. रेस्ट्रिक्टेड इस्तेमाल का मतलब है कि जिस किसी कोविड-19 के मरीज़ को इलाज के दौरान ये दवा दी जाएगी, उसके लिए पहले मरीज़ की सहमति अनिवार्य होगी. बीबीसी ने भारत सरकार के दूसरे विभाग वैज्ञानिक और ओद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के डीजी डॉक्टर शेखर मांडे से बात की. उन्होंने माना कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया से इस दवा के लिए इमरजेंसी और रेस्ट्रिक्टेड ट्रायल की इजाज़त मिल गई है. डॉक्टर शेखर मांडे के मुताबिक़ जापान और रूस में इसका इस्तेमाल पहले से किया जाता रहा है. इस लिहाज़ से ये खब़र भारत के लिए 'गुड न्यूज़' ज़रूर है. डॉक्टर शेखर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया के सामने पेश किए गए डेटा और ट्रायल रिपोर्ट के आधार पर ही दवाओं के इस्तेमाल के लिए इजाज़त मिलती है. इसका मतलब ये है कि ग्लेनमार्क ने जो डेटा पेश किए हैं, उससे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया संतुष्ट है और तभी उसके इस्तेमाल के लिए आगे की राह आसान हुई है.

कोविड-19 के इलाज में इस दवा के आने से उम्मीद की एक नई किरण ज़रूर नज़र आई है. डॉक्टर शेखर का मानना है कि अब सीधे डॉक्टर इस दवा के इस्तेमाल करने की सलाह मरीज़ों को दे सकते हैं. वैसे तो इस दवा का दुनिया के कई देशों में कोविड-19 के इलाज के लिए ट्रायल चल रहा है. इसमें जापान, रूस, चीन जैसे बड़े देश शामिल हैं. भारत में इस दवा का ट्रायल देश के 11 शहरों के 150 कोविड-19 मरीज़ों पर किया गया. इसमें से 90 मरीज़ ऐसे थे, जिन्हें हल्का संक्रमण था. जबकि 60 मॉडरेट संक्रमण वाले मरीज़ थे. सपोर्टिव केयर के साथ इन मरीज़ों को 14 दिन तक ये दवा देने के बाद सकारात्मक असर देखने को मिला है. रूस में इस दवा की स्टडी 390 मरीज़ों पर की गई थी. इस दौरान फ़ैबिफ़्लू के इस्तेमाल के चौथे दिन से ही मरीज़ों में 65 फ़ीसदी सुधार देखने को मिला. रूस में इस दवा को कोविड-19 के इलाज में 80 फ़ीसदी सफल माना जा रहा है. जापान में भी इस दवा पर ऑब्ज़र्वेशनल स्टडी तक़रीबन 2000 लोगों पर की गई है. वहाँ सातवें दिन के ट्रीटमेंट के बाद 74 फ़ीसदी लोगों में दवा का सकारात्मक असर देखने को मिला और 88 फ़ीसदी लोगों में 14 दिनों के बाद इसका अच्छा असर देखने को मिला है. ये स्टडी मई के महीने में की गई है. चीन में भी इस दवा पर दो अलग-अलग स्टडी की गई हैं. तक़रीबन 300 लोगों पर की गई इस स्टडी में दवा देने के 7 दिन के बाद से पॉज़िटिव असर देखने को मिले हैं.

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल ने कुछ मरीज़ों के इलाज में इस दवा का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. अस्पताल के मेडिसिन विभाग के हेड डॉक्टर एसपी बायोत्रा के मुतब़िक जब दुनिया में कोविड-19 के इलाज के लिए कोई दवा है ही नहीं, तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि बाहर के देशों में सकारात्मक असर देखने को मिला है इसलिए हमने भी इसकी शुरुआत की है. उनके मुताबिक़ पहले दिन इस दवा का 1800mg दिन में दो बार मरीज़ को दिया जा सकता है. फिर बाद के दिनों में डोज़ को घटा कर 800mg किया जा सकता है.

डॉक्टर बायोत्रा इस दवा को गर्भवती महिलाओं, बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं, लीवर, किडनी के मरीज़ों पर इसका इस्तेमाल फ़िलहाल नहीं करने की सलाह देते हैं. यानी जिन मरीज़ों को पहले से दूसरी बीमारी है, उन पर इस दवा के इस्तेमाल से बचने की सलाह देते हैं. उनका मानना है कि नई दवाओं का ट्रायल अक्सर दूसरी बीमारी वाले मरीज़ों पर नहीं किया जाता है. फ़िलहाल अपने मरीज़ों पर इसके असर के बारे में डॉक्टर बायोत्रा ने कुछ नहीं कहा है. उनके मुताबिक़ अभी एक दो दिन से ही उन्होंने इसका इस्तेमाल शुरू किया है.

फ़ैबिफ़्लू का 34 टेबलेट का एक पूरा पत्ता आता है जिसकी क़ीमत बाज़ार में 3500 रुपए है. यानी एक दवा तक़रीबन 103 रुपये की पड़ती है.

फ़ैबिफ़्लू को लेकर चिंता

हालांकि कुछ डॉक्टर इस दवा के इस्तेमाल को इजाज़त मिलने से चिंतित भी हैं. डॉक्टर अरविंद, जो लंग केयर फ़ाउंडेशन से जुड़े हैं, उनके मुताबिक़ इस दवा का कोई गोल्ड स्टैंडर्ड टेस्ट जिसे RCT टेस्ट कहते हैं वो नहीं हुआ है. RCT का मतलब होता है रैडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल. पूरी दुनिया में किसी भी दवा को बिना इस ट्रायल के स्वीकार नहीं किया जाता है. लेकिन फ़ैबिफ़्लू के लिए ऐसा कोई टेस्ट नहीं किया गया है. डॉक्टर अरविंद की दूसरी चिंता है कंपनी द्वारा किए गए 150 पेशेंट के टेस्ट के रिजल्ट की. हालांकि उनका कहना है कि कंपनी ने ऐसा क्यों किया ये उन्हें नहीं मालूम. डॉक्टर अरविंद के मुताबिक़ कंपनी ने चीन और रूस के जिन ट्रायल का हवाला दिया है दरअसल उन जगहों पर दूसरी दवाओं से तुलना की गई, जिनकी प्रमाणिकता साबित है.

उनके मुताबिक़ कम से कम 1000 पेशेंट पर इस दवा के ट्रायल के बाद ही इसे कोविड19 के इलाज के लिए कारगर साबित किया जा सकता है. ऐसी ही चिंता दूसरे डॉक्टरों ने भी जाहिर की है. डॉक्टरों की इस चिंता पर कंपनी की तरफ़ से प्रतिक्रिया का इंतजार है. कोविफ़ॉर' नाम की नई दवा फ़ार्मा कंपनी हेटेरो की तरफ़ से भी एक दावा किया जा रहा है कि भारत में अब 'कोविफ़ॉर' बनाने की मंज़ूरी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया से मिल गई है. ये दवा भी कोरोना के इलाज में कारगर मानी जा रही है. हेटेरो, जेनरिक दवा बनाने वाली कंपनी है, जो रेमडेसिवियर का जेनेरिक वर्जन दवा 'कोविफ़ॉर' भारत में बनाएगी और बेच सकेगी. रेमडेसिवियर एक एंटीवायरल दवा है, ये लाइसेंस्ड ड्रग है जिसका पेटेंट अमरीका की गिलिएड कंपनी के पास है. गिलिएड ने वोलेंटरी लाइसेंस भारत की 4-5 कंपनियों को दिया है, जिसमें सिप्ला और हेटेरो जैसी कंपनियाँ शामिल हैं. इसका मतलब ये है कि अब ये कंपनियाँ भी रेमडेसिवियर बना सकेंगी और बाज़ार में बेच सकेंगी. अब गिलिएड कंपनी के साथ इनका करार हो गया है.

 
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