कोरोना संक्रमण काल में आखिर कैसे भेजेंगे बच्चों को स्कूल

30-06-2020 11:26:15
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कोरोना संक्रमण काल में आखिर कैसे भेजेंगे बच्चों को स्कूल

कोरोना संकटकाल में अनिश्चितताओं के बवंडर के बीच अभिभावक इस तनाव में हैं कि प्रभावी उपचार या टीका आने तक अपने कलेजे के टुकड़े को आखिर कैसे स्कूल भेज देंगे। अनलॉक-1 में जुलाई से स्कूल खुलने की सुगबुगाहट ने अभिभावकों को घोर चिंता में डाल दिया है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल खुलने से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होगा और इसकी जद में छोटे-छोटे बच्चे भी आएंगे। शहर में रोजाना ही संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, इन हालात में स्कूल खोलने का फैसला बिल्कुल भी सही नहीं है। स्कूली बच्चे टेस्टिंग के लिए नहीं हैं। सरकार पहले विधानसभा और संसद खोले। दशर्कों से भरा स्टेडियम, शॉपिंग मॉल खोले। जनप्रतिनिधि रैलियों में शामिल हों. तब हम अपने बच्चे स्कूल भेजेंगे। दुनियाभर में हाहाकार मचाने वाले कोरोना वायरस का हर तरफ खौफ है। अभिभावक भी इससे अछूते नहीं हैं। स्कूल खोलने के निर्णय पर अभिभावक बोले नहीं भेजेंगे बच्चों को स्कूल अभिभावकों का कहना है कि अगर स्कूल खुलते हैं तो वे बच्चों को नहीं भेजना चाहते हैं। बच्चों को स्कूल भेजने से पहले वो इसे लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं कि कोरोना को लेकर स्थिति कंट्रोल में है। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि घर और कार्यालय तक ही सीमित हैं। आमतौर पर वे घरों पर मजमा लगाए रहते हैं, लोगों के सुख दुख में भागीदार बनते हैं, मगर अब वे सिर्फ फोन के जरिए ही बात कर रहे हैं। जब जनप्रतिनिधियों को कोरोना का खतरा है तो बच्चे भी इस खतरे से दूर नहीं है। पेरेंट्स आक्रोशित हैं कि आखिर कैसे सरकार ने एक झटके में जुलाई से स्कूल खोलने का फैसला बिना अभिभावकों से मशविरा किए बगैर तय कर लिया। संक्रमण हुआ तो बच्चों को बताएंगे जिम्मेदार पेरेंट्स का कहना है कि जुलाई से स्कूल खोलने की बात की जा रही है। ऐसे में उनका सवाल है कि संक्रमण रोकने के नियमों का कैसे अनुपालन कराया जाएगा। छोटे या बड़े बच्चों को स्कूल में मास्क पहनाकर रखना, कोई चीज छूने पर साबुन या सैनिटाइजर का प्रयोग करना, फिजिकल डिस्टेंसिंग के अनुपालन की चिंता सताती रहेगी। आशंका जताई कि अगर स्कूल जा रहे बच्चे में संक्रमण पाया जाएगा तो स्कूल बच्चों या पेरेंट्स को ही जिम्मेदार बताएंगे। फीस वसूलने के लिए हो रही यह कवायद कुछ अभिभावकों का कहना है कि फिलहाल एक्सपेरिमेंट बेसिस पर स्कूल खोले जाएंगे। जिसका मकसद सिर्फ फूीस वसूलना है और अगर कोरोना का कोई केस सामने आएगा तो तत्काल स्कूलों को बंद करा दिया जाएगा। मगर तब तक काफी देर हो चुकी होगी। क्योंकि एक बच्चे के संपर्क में सिर्फ क्लास के ही नही बल्कि दूसरे क्लासों के बच्चे भी आते हैं। वहीं, रिक्शा, ऑटो, टैक्सी, बस आदि साधनों से वह स्कूल और घर पहुंचते हैं। इनसे भी संक्रमण की आशंका है। अवकाश होने पर स्कूल के बाहर मौजूद ठेले खोमचे वालों से भी खाने की चीजें लेते हैं। टिफिन शेयर करते हैं। यह खतरे का संकेत है। सिर्फ कोरम पूरा होगा.. पढ़ाई नहीं होगी कौन सा बच्चा किस क्षेत्र से आ रहा है। किन साधन और किसके संपर्क में आ रहा है इसे लेकर स्कूल का हर स्टाफ चिंतित रहेगा। वह भी बच्चों से दूरी बनाकर रखेगा। यह स्थिति होने पर पढ़ाई का सिर्फ कोरम पूरा होगा, ज्ञानार्जन होना बेहद कठिन है। लिहाजा, सरकार से पेरेंट्स की गुजारिश है कि तीन चार माह में कोई आफत नहीं आ रही है। कोरोना के फैलते दायरे को देखते हुए स्कूल को खोलना उचित नहीं है। इसलिए उन्होंने जिले में करीब माह भर तक कोई संक्रमित नहीं मिलने के बाद ही स्कूल खोलने की मांग की है। लगातार मास्क पहनने से हो सकती है गंभीर बीमारी चिकित्सकों के मुताबिक लगातार मास्क पहनने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। अगर बच्चे स्कूल में दौड़ते हैं तो उनके शरीर को ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत होगी। ऐसी स्थिति में बच्चे मास्क को हटाएंगे तो संक्रमण की आशंका बढ़ जाएंगी और नहीं हटाएंगे तो अन्य बीमारियों की भी चपेट में आ जाएंगे। ऐसे में मास्क कैसे उतारना है, फिर उसे कैसे पहनना है, मास्क कौन सी गुणवत्ता का होना चाहिए, पानी पीने या टिफिन खाते समय मास्क कैसे हटाना है, हाथ कैसे सैनिटाइज करने हैं.. यह सब बच्चों को सिखाना जरूरी है। जो कि बेहद कठिन है। सरकार से पेरेंट्स के सवाल: क्या कोरोनावायरस का संक्रमण कम हो रहा है। क्या कोरोना बच्चों को हानि नहीं पहुंचाता है। ऑटो, टेंपो पर लटकते बच्चों में फिजिकल डिस्टेंसिंग रह पाएगी। स्कूल के टीचर, आया बाई, चपरासी, बस ड्राइवर, कंडक्टर, गार्ड सभी कोरोना टेस्ट में नेगेटिव साबित होने के बाद ही बच्चों के सामने लाए जाएंगे।। एक-एक क्लास में जहां 50 से ज्यादा बच्चे होते हैं वहां छह फीट की दूरी कैसे बनाई जाएगी। प्रेयर, लंच और छुट्टी के समय बच्चों के निकलने पर दूरी कैसे बनाए रखी जा सकेगी। बच्चे में संक्रमण पाए जाने पर स्कूल या शासन कौन जिम्मेदारी लेगा। बगैर पेरेंट्स के आइसोलेशन वार्ड में बच्चों की उचित देखभाल हो सकेगी। एक बच्चा संक्रमित होने पर तमाम अन्य भी संक्रमण की जद में आएंगे, कहां-कहां हॉटस्पॉट बनेगा। किसी स्कूल में संक्रमण मिलने पर स्कूल कब तक बंद रहेंगे, इस बीच बच्चों की पढाई का क्या होगा। मम्मियों ने कहा- कोरोना के खात्मे तक नहीं भेजेंगे स्कूल आखिर कैसे भेजेंगे जिगर के टुकड़े को स्कूल कोरोना संकटकाल में अनिश्चितताओं के बवंडर के बीच अभिभावक इस तनाव में हैं कि प्रभावी उपचार या टीका आने तक अपने कलेजे के टुकड़े को आखिर कैसे स्कूल भेज देंगे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, गुरुग्राम और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब 10 हजार लोगों पर 12 से 14 जून तक किये गये ऑनलाइन शोध सर्वे कोरोना वायरस के रहते बच्चे को स्कूल कैसे भेजेंकी रिपोर्ट में ऐसे ही कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। सामाजिक विज्ञानी डा उजमा नाज ने यह शोध सर्वे मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के नानक चंद एंग्लों संस्कृत स्नातकोत्तर कालिज के पूर्व प्राचार्य एवं प्रमुख समाज शास्त्री प्रोफेसर धर्मवरी महाजन के नेतृत्व में किया है। डा उजमा ने बताया कि सर्वे में 77.5 प्रतिशत पुरुष और 22.5 प्रतिशत महिलायें शामिल हुईं, जिनमें 84.3 प्रतिशत माता पिता, 5.5 प्रतिशत दादा दादी, 1.2 नाना नानी और 8.9 प्रतिशत अन्य अभिभावक थे। इनमें सबसे ज्यादा कक्षा एक से 5 तक 40.1 प्रतिशत, कक्षा 6 से 8 तक के 21.6 प्रतिशत, कक्षा 9 से 12 के 20 और नर्सरी से यूकेजी के बच्चों के 18.4 प्रतिशत अभिभावक शामिल हुए। समाज शास्त्र में पीएचडी करने के अलावा कई शोध सर्वे कर चुकीं डा उजमा ने बताया कि तमाम अभिभावकों ने मौजूदा कोराना के कहर को देखते हुए बच्चे के करियर के बजाय उसकी जिन्दगी को अपनी पहली वरीयता दी है। उनका मत है कि जब उन्होंने लॉकडाउन के बाद से आज तक बच्चे को पड़ोस में हॉबी क्लास, खेलकूद या बर्थडे पार्टी में नहीं भेजा तो स्कूल भेजने के बारे में कैसे सोच सकते हैं जबकि अभी तक कोरोना का कहर थमा नहीं है। डा उजमा ने बताया कि 97.3 प्रतिशत अभिभावकों का मानना है कि बच्चों को कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित रख पाने में स्कूल सक्षम नहीं हैं और उनका बच्चा वहां सुरक्षित नहीं रह सकता। तमाम सुरक्षा उपायों का दावा करने वाले स्कूल में उनके बच्चे की देखभाल वैसी नहीं हो पायेगी जैसी घर पर वे स्वयं करते हैं। स्कूल की जिम्मेदारी के संबंध में डा उजमा ने बताया कि अगर किसी स्कूल में कुछ बच्चे कोरोना संक्रमित हो जाते हैं तो 54.2 प्रतिशत अभिभावकों ने इसके लिये स्कूल प्रबंधन को और 45.3 प्रतिशत ने स्वयं अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराया है जबकि 74 प्रतिशत का कहना है कि वे स्कूल से अपने बच्चे की सुरक्षा की गारंटी के लिये लिखित अनुबंध लिये बगैर बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगे। डा उजमा ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से 84.3 प्रतिशत अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चे के लिये स्कूल में लगातार छह घंटे तक मास्क लगाये रखना संभव नहीं होगा, जबकि 15.7 प्रतिशत इसे संभव मानते हैं। इसके अलावा 96.8 प्रतिशत ने स्कूल बसों को सोशल डिस्टेंसिंग को पूरी तरह असुरक्षित करार दिया है। अधिकांश (81.8 प्रतिशत) अभिभावकों ने स्कूल में चैक की गई कापियों और किताबों को बच्चों के लिये असुरक्षित बताते हुए इससे कोराना संक्रमण की आशंका व्यक्त की है जबकि 82 प्रतिशत लॉकडाउन के दौरान नोएडा के जिलाधिकारी के आदेश पर तमाम स्कूलों की फीस माफ करने की तर्ज पर इस अवधि की फीस न देने के पक्ष में हैं। डा उजमा ने बताया कि 91.3 प्रतिशत अभिभावक अमरीका और कुछ अन्य देशों की तरह कोरोना वायरस के कहर से बचने के लिये इस वर्ष को जीरो (शून्य) शैक्षणिक वर्ष घोषित करवाने के पक्ष में हैं, जिससे बच्चे को इस साल स्कूल न भेजकर अगले वर्ष अगली क्लास में प्रोमोट कर दिया जाये जबकि 8.7 ने इसका विरोध किया है। अभिभावकों का कहना है की जब तक जीरो केस न हो जाए बच्चों को स्कूल भेजना मुश्किल है। उन्हें सैनिटाइजर का प्रयोग, मास्क लगाने या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना कठिन है। स्कूल में संक्रमण की आशंका से इनकार नहीं कर सकते। जब एक भी केस नहीं था तो स्कूल बंद कर दिए गए और अब जब हर दिन संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं तो स्कूल खोलने की बात की जा रही है। बड़े जब मास्क या सैनिटाइजर का ध्यान नही रख पाते तो बच्चों से इसकी उम्मीद करना ही बेकार है। संक्रमण के मामले खत्म होने के बाद ही स्कूलों को खोलना चाहिए। सरकार को भी इस पर विचार करनी चाहिए। संसद, विधानसभा यहां तक की जिम और थिएटर सब बंद है और बच्चों के लिए स्कूल खोलने का निर्णय सरकार ले रही है। पहले यह सब खोले जाएं उसके बाद ही स्कूल खुलें तो बच्चों को भेजा जा सकता है। एक तरफ सरकार कह रही है कि प्रवासियों के आने से संक्रमण का ग्राफ बढ़ रहा है और इसी बीच स्कूल खोलने का निर्णय लिया जाना समझ से परे है। हम अपने बच्चों को अभी स्कूल भेजने के बारे में सोच ही नहीं रहे हैं। बच्चों को स्कूल भेजने पर अगर वह संक्रमित होंगे तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। स्कूल बंद होंगे तो कोर्स पिछड़ने पर आगे कैसे पढ़ाई होगी। जब तक सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे। वहीँ जनप्रतिनिधि तो घरों में बैठे हैं और वहीं से बच्चों को लेकर नियम बना रहे हैं। पहले वह खुद बाहर निकलें और जनता के बीच जाकर पीड़ितों की मदद करें। उसके बाद स्कूल खोलने के निर्णय करें तो बेहतर है। जब बच्चे घर में पेरेंट्स के साथ रहकर भी बात नहीं मानते हैं तो स्कूल में दोस्तों के साथ होने पर वह कैसे नियमों का पालन करेंगे। इससे बच्चे पढ़ाई तो नहीं कर पाएंगे लेकिन तनाव से हमेशा ग्रसित रहेंगे। अभिभावकों का कहना है की सरकार स्कूल संचालकों के दबाव में आकर गंभीर परिस्थितियों में स्कूल खोलने की योजना बना रही है जो घातक साबित होगी। स्कूल संचालक और जनप्रतिनिधि अपने बच्चों को स्कूल भेजें तो हम भी सोचेंगे। स्कूल वाले सिर्फ फीस लेने के लिए बच्चों को कुछ दिन स्कूल बुलाएंगे और संक्रमण मिलते ही तत्काल स्कूल बंद कर देंगे। संक्रमण की सारी जिम्मेदारी पेरेंट्स पर थोप दी जाएगी जो कतई बर्दाश्त नहीं होगा। वहीँ अंकुर किशोर सक्सेना, अध्यक्ष, अभिभावक संघ का कहना है की स्कूल खुलेंगे तो मैं अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे तथा जब तक संक्रमण का एक भी केस जिले में है स्कूल खोले जाने के बाद भी कोई पेरेंट बच्चे को स्कूल न भेजे। हमारी सरकार और जिला प्रशासन से मांग है कि स्कूल खोलने को लेकर जल्दबाजी न करें। पेरेंट्स से अपील है कि वह बच्चों को जीरो केस होने तक स्कूल न भेजें।  


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