मोदी सरकार की किसान ,मजदूर तथा कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल 26 नवंबर को

27-10-2020 17:29:00
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केंद्रीय ट्रेड यूनियनों तथा राष्ट्रीय फेडरेशनों के हिमाचल प्रदेश के संयुक्त मंच की बैठक में ऐलान किया है कि आगामी 26 नवंबर को देश के करोड़ों मजदूर व कर्मचारी मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल करेंगे ।

इस दिन प्रदेश के सभी उद्योग व संस्थान बंद रहेंगे तथा मजदूर व कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। हड़ताल को सफल बनाने के लिए इस से पूर्व ब्लॉक, जिला व राज्य स्तर पर ट्रेड यूनियनों व कर्मचारी फेडरेशनों की संयुक्त बैठकें होंगी।

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के हिमाचल प्रदेश के संयोजक डॉ कश्मीर ठाकुर, इंटक प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज व सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने आज यहां संयुक्त बयान कहा कि प्रदेश के सभी उद्योगों व संस्थानों में हड़ताल रहेगी। लाखों मजदूर सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार व प्रदेश सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोलेंगे।

उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के साथ ही किसान विरोधी तीन कानूनों को पारित करने से यह साबित हो गया है कि ये सरकार मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी है। यह सरकार लगातार गरीबों के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार के इन निर्णयों से अस्सी करोड़ से ज्यादा मजदूर व किसान सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। नई शिक्षा नीति से योजनाकर्मी बर्बाद हो जाएंगे।

उनके अनुसार उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हजार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोजगार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में 15 करोड़ मजदूरों की नौकरियां चली गयी हैं व वे बेरोजगार हो गए हैं। मजदूरों को नियमित रोजगार से वंचित करके फिक्स टर्म रोजगार की ओर धकेला जा रहा है।



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