पांच राज्यों के चुनाव परिणाम, सभी कयास धवस्त

24-05-2021 16:12:43
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मतदाताओं ने राजनीतिक दलों को दिया बड़ा संदेश

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने धवस्त किए सभी कयास

बंगाल में तृमकां तीसरी बार, असम-पुड्डुचेरी में राजग, केरल में वाम मोर्चा, तमिलनाडु में द्रमुक सरकार, कांग्रेस बेजार

देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में तीन प्रदेशों पश्चिम बंगाल, असम और केरल के मतदाताओं ने सत्ता विरोधी लहर होने संबंधी कयासों-अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। इन चुनावों में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करते हुए परिवर्तन के तमाम कयासों को गलत साबित किया। सरकार विरोधी हवा के अनुमान के बावजूद असम में भाजपा भी अपनी सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही। केरल में वाम मोर्चा सत्ता बचाए रखने में कामयाब रहा है। केरल में वाम मोर्चे ने सरकार में वापसी करते हुए न केवल सत्ता विरोधी लहर के कयास ही बेमानी साबित किए, बल्कि राज्य में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की परम्परा पर विराम लगाकर इतिहास रच दिया। हालांकि तमिलनाडु में मतदाताओं ने द्रमुक की अगुआई वाले विपक्षी गठबंधन और  केंद्रशासित राज्य पुडुचेरी में विपक्षी राजग को सत्ता सौंप कर मतदाताओं ने परिवर्तन के कयासों को सही साबित किया। तमिलनाडु में बीते करीब चार दशक में पहली बार कलईगनार और अम्मा के बगैर हुए इस चुनाव में द्रमुक प्रमुख एम.के. स्टॉलिन विजेता बनकर उभरे। उन्होंने बदलाव के कयासों को सही साबित करते हुए अन्नाद्रमुक को करारा झटका दिया और द्रमुक ने अरसे बाद सूबे की सत्ता में वापसी की


अधूरी रह गई पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने और दक्षिणी में विस्तार की भाजपाई आस

पांच राज्यों में हुए इन चुनावों के परिणामों से जहां पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व की सत्ता हासिल करने की आस अधूरी रह गई, वहीं दक्षिणी राज्यों में जनाधार को विस्तार देने की उसकी हसरत भी पूरी नहीं हो सकी। हालांकि असम में भाजपा की अगुआई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) अपनी सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रहा। पड्डुचेरी में राजग ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाते हुए मजबूती के साथ परचम फहराया और इस छोटे से केंद्र शासित राज्य में पहली बार सत्ता हासिल करने में कामयाबी पाई।

कांग्रेस को लगा सबसे बड़ा झटका

पांच राज्यों में हुए विधानसभा के चुनावों में सबसे बड़ा झटका नेत‍्त्व और नीतियों को लेकर अंतर्द्वंद्व से जूझ रही कांग्रेस को लगा। मतदाताओं का भरोसा जीत पाने से वंचित रहने के कारण अबकी चुनावों में सबसे ज्यादा फजीहत कांग्रेस को झेलनी पड़ी। पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में कांग्रेस की साख दांव पर थी, लेकिन किसी भी राज्य में वह बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बतौर मुख्य विपक्षी दल उभरी थी, लेकिन अबकी मतदाताओं ने उससे न केवल वह रुतबा ही छीन लिया, बल्कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन को बेहद शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा और राज्य में कांग्रेस व वाम दलों का खाता तक नहीं खुल सका। केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कांग्रेस सत्ता से बाहर होना पड़ा, वहीं असम और केरल में सत्ता में वापसी की उसकी हसरतें भी धूल धूसरित हो गईं। हालांकि तमिलनाडु में द्रमुक के पक्ष में मतदाताओं के रूझान का फायदा सहयोगी दल के रूप में कांग्रेस को जरूर मिला।

तीसरी बार तृमकां की जीत ने ममता के कद को राष्ट्रीय राजनीति में दिया और उभार

पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार तृमकां की जीत ने न केवल राज्य में ही ममता बनर्जी को और मजबूत किया है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उनके कद को और उभार देने का काम किया है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करते हुए परिवर्तन के तमाम कयासों को गलत साबित किया। हालांकि तृमकां की यह भारी-भरकम जीत पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नन्दीग्राम सीट पर भाजपा उम्मीदवार के मुकाबले हार जाने से फीकी पड़ गई। ममता को कभी उनके सिपहसालार रहे सुवेन्दु अधिकारी ने 1957 मतों से पछाड़ दिया। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी बेशक सत्ता हासिल करने से चूक गई हो, लेकिन उसकी सीटों का आंकड़ा 3 से 77 पर पहुंच गया। मतदाताओं के नकार दिए जाने से यहां कांग्रेस-वामदलों को खासी फजीहत झेलनी पड़ी और कभी दशकों तक भद्रलोक में सरकार चलाने वाले इन दलों का खाता तक नहीं खुल सका।

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने लगाई हैट्रिक, लगातार तीसरी बार ममता सरकार

सुश्री बनर्जी ने राज्य के 294 में से 292 विधानसभा क्षेत्रों में हुए चुनाव में 213 सीटों पर अपने बूते तृमकां की जीत का परचम लहराया। यह उनका लगातार तीसरा कार्यकाल है। हालांकि ममता बनर्जी को इस चुनाव में मतदाताओं ने एक जारदार झटका भी दिया। नंदीग्राम सीट पर हुए कांटे के मुकाबले में ममता बनर्जी को कभी अपने सिपहसालार रहे भाजपा के सुवेन्दु अधिकारी से 1957 मतों से हार का सामना करना पड़ा। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) को एक सीट और राज्य में कांग्रेस-वाम मोर्चा में शामिल इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) को एक सीट मिली।

3 से 77 सीटों पर पहुंची भाजपा

पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बेशक सत्ता हासिल करने की दौड़ में तृमकां के मुकाबले भारी अन्तर से पिछड़ गई हो, लेकिन भद्रलोक कहे जाने वाले इस राज्य के चुनावों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता दिखा। नतीजा यह हुआ कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी वर्ष 2016 में जिस भाजपा के महज तीन उम्मीदवार ही विधायक बनकर सूबे की सबसे बड़ी पंचायत की चौखट लांघ सके थे, अबकी इस आंकड़े में चमत्कारिक बढ़ोत्तरी हुई और भाजपा के विधायकों की संख्या ईकाई से बढ़कर 77 हो गई। वर्ष 2019 के लोकसभा की तर्ज पर भद्रलोक कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल के मतदाताओं ने अबकी विधानसभा चुनाव में भी पहली बार भाजपा पर जमकर भरोसा किया। भाजपा बेशक भरसक प्रयास के बावजूद पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज न हो सकी हो, लेकिन इस बार के चुनाव में मतदाताओं ने भगवा दल पर खासा भरोसा किया। सूबे में भाजपा को पिछली बार मिली 3 सीटों के मुकाबले अबकी उसके विधायकों की संख्या 25 गुना को पार करते हुए 77 हो गई। बांग्ला भूमि से कांग्रेस और वामदलों का अस्तित्व समाप्त होने के साथ ही अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी वहां अपना वजूद नहीं बचा सकीं हैं। अब भाजपा ही बतौर मजबूत विपक्ष की भूमिका अदा करते हुए ममता बनर्जी की विचारधारा का मुकाबला करती दिखेगी।

कांग्रेस-वामदलों का खाता तक नहीं खुल सका

पश्चिम बंगाल के मतदाताओं ने कांग्रेस-वामदलों को पूरी तरह से नकार दिया। जिसके परिणामस्वरूप यहां कांग्रेस-वामदलों को खासी फजीहत झेलनी पड़ी और कभी दशकों तक भद्रलोक में सरकार चलाने वाले इन दलों का खाता तक नहीं खुल सका। खास बात यह है कि अबकी चुनाव में कांग्रेस-वाम दलों ने फुरफरा शरीफ गांव में स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी की दरगाह कर्ता-धर्ता मुस्लिम धर्मगुरु पीरजादा मौलाना अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए किया गया यह फैसला घातक सिद्ध हुआ और फायदे के बजाए नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) को इस गठजोड़ का फायदा मिला और उसने पहली बार में ही एक सीट जीतते हुए विधानसभा में अपना खाता खोल लिया।

असम में अबकी दूसरी बार राजग सरकार

असम में एक बार फिर राजग सरकार बन गई है। इस बार खास बात यह रही की राजग ने बेशक मुख्यमंत्री के नाम का पहले ऐलान नहीं किया हो, लेकिन चुनावी कमान कमोबेश पूरी तरह नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री हिमन्त विश्व सरमा के हाथ ही रही। जिससे उनके विधायक दल का नेता चुने जाने से पूर्व ही कयास लगने लगे थे कि मुख्यमंत्री पद से सर्वानंद सोनोवाल का पत्ता कटने वाला है और चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद यह बात सही साबित भी हुई। असम में सभी 126 में से राजग को 75 सीटों पर निर्णायक जीत हासिल हुई और उसने कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन को मिली 50 सीटों के मुकाबले बहुमत प्राप्त कर लिया। राजग गठबंधन में भाजपा ने 60, अगप ने 9 और यूपीपीएल ने 6 सीटों पर विजय प्राप्त की। विपक्षी महागठबंधन में सबसे बड़े दल कांग्रेस को 29 सीटों पर जीत मिली, जबकि बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को 16 सीटें मिलीं। सीपीआईएम को एक सीट से संतोष करना पड़ा, जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में आई। बोडो लैंड पीपुल्स फ्रंट को चार सीटें मिलीं।

कलईगनार और अम्मा के बगैर हुए चुनाव में द्रमुक के स्टॉलिन रहे विजेता

तमिलनाडु में बीते करीब चार दशक में यह पहला ऐसा विधानसभा चुनाव रहा जो कलईगनार यानी एम.करूणानिधि और अम्मा यानी जे. जयललिता के बगैर हुआ। इन चुनावों में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) प्रमुख एम.के. स्टॉलिन विजेता बनकर उभरे। उन्होंने बदलाव के कयासों को सही साबित करते हुए अन्नाद्रमुक को करारा झटका दिया और द्रमुक ने अरसे बाद सूबे की सत्ता में वापसी की। द्रमुक ने एम.के. स्टॉलिन के नेतृत्व में शानदार प्रदर्शन करते हुए बहुमत हासिल कर लिया। राज्‍य में विधानसभा की कुल 234 सीटों में से द्रमुक 133 पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। द्रमुक ने कांग्रेस समेत अपने अन्य सहयोगियों के साथ कुल 159 सीटें जीती हैं। कांग्रेस को यहां 18 सीटों पर जीत हासिल हुई है। राजग में शामिल अन्नाद्रमुक (एआईएडीएमके) को 66 सीटें ही मिल सकीं, जबकि सहयोगी भाजपा को चार और पीएमके को पांच सीटों पर जीत मिली।

केरल में वाम मोर्चा ने हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की परम्परा पर लगाया विराम

केरल में वाम दलों का गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) यानी वाम मोर्चा परिवर्तन की तमाम चर्चाओं को बेमानी करते हुए अपनी सत्ता बचाए रखने में कामयाब रहा है। देश में अब केरल ही ऐसा इकलौता राज्य बचा है, जहां वाम दलों की सरकार है। केरल में वाम मोर्चे ने सरकार में वापसी करते हुए न केवल सत्ता विरोधी लहर के कयास ही बेमानी साबित किए, बल्कि राज्य में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की परम्परा पर विराम लगाकर इतिहास रच दिया। एलडीएफ ने कुल विधानसभा 140 सीटों में से 99 सीटों पर जीत प्राप्त की और सत्ता में लौटने का सपने देखने वाले कांग्रेसनीत गठबंधन यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के अरमान तोड़ दिए। एलडीएफ में शामिल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 62 सीटों पर और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि 20 सीटें अन्य सहयोगी दलों के हिस्से आईं। कांग्रेसनीत गठबंधन यूडीएफ को 41 सीटें मिली हैं, इनमें कांग्रेस को 21 सीटें और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को 15 सीटें मिलीं। अन्य के खाते में 5 सीटें गई हैं। हालांकि पश्चिम बंगाल की तरह इस बार केरल में भी दम भर रहे भाजपानीत राजग गठबंधन का खाता भी नहीं खुल सका है।

केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में पहली बार राजग सरकार

छोटे से केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में पहली बार ऐसा हुआ है जब भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी 'राजग' की सरकार बनी है। यहां 'राजग' में शामिल ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस (एआईएनआरसी) की अगुवाई में भाजपा और अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके) गठबंधन को बहुमत मिला है। हालांकि एआईएनआरसी के अध्यक्ष एन. रंगास्वामी दूसरी बार पुडुचेरी के मुख्यमंत्री बने हैं। पुडुचेरी में इसी साल फरवरी में अल्पमत में आने के चलते कांग्रेस सरकार गिर गई थी। इसके बाद हुए चुनाव में पुड्डुचेरी की कुल 30 सीटों में से 'राजग' में शामिल आल इंडिया एनआर कांग्रेस को 10 सीटों पर जीत मिली, जबकि भाजपा और अन्नाद्रमुक को छह-छह सीटें मिलीं। छह सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने बाजी मारी, वहीं कांग्रेस महज दो सीटों पर ही सिमट गई।


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